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ज्ञानान्तरवेद्यज्ञानवादः विषयभेदाज्ज्ञानभेदकल्पना; समानेन्द्रियग्राह्य योग्यदेशावस्थितेर्थे घटपटादिवदेकस्यापि ज्ञानस्य व्यापाराविरोधात् । न च घटादावपि ज्ञान भेदः समानगुणानां युगपद्भावानभ्युपगमात् । क्रमभावे च प्रतीतिविरोधः सर्वज्ञाभावश्च । युगपद्भावाभ्युपगमे चानयोः सव्येतरगोविषाणवत्कार्यकारणभावाभावः। विशेषणविशेष्यज्ञानयो। क्रमभावेप्याशुवृत्त्या योगपद्याभिमानो यथोत्पलपत्रशतच्छेद इत्यप्यसङ्गतम् ; निखिलभावानां क्षणिकत्वप्रसङ्गात्सर्वत्रैकत्वाध्यवसायस्याशुवृत्तिप्रवृत्तत्वात् । प्रत्यक्षप्रतिपन्नस्यास्य
प्रतीत नहीं होते किन्तु विशेषण और विशेष्य दोनों को ग्रहण करनेवाला एक ही ज्ञान अनुभव में आता है, विशेषण और विशेष्य इस प्रकार दो विषय होने से ज्ञान भी भिन्न २ होवे ऐसा नियम नहीं है, इसी को बताते हैं-समान-एक ही इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण करने योग्य एवं अपने योग्य स्थान में स्थित ऐसे घट पट अादि पदार्थों को एक ही ज्ञान जानता है इसमें कोई विरोध नहीं है । अत: यह निश्चय होता है कि विषय भेद से ज्ञान में भी भेद नहीं होता है । यदि योग कहे कि घट पट आदि में एक साथ प्रवृत्त होनेवाले ज्ञान में भी हम भेद ही मानते हैं अर्थात् एक स्थान पर अनेक पदार्थ रखे हैं उन पर आँख की नजर पड़ते ही सब का जानना एक ही ज्ञान के द्वारा हो जाता है ऐसा जो जैन ने कहा था वह गलत है, क्योंकि उन घटादिकों में प्रवृत्त हुए ज्ञानों में भेद हो है, सो यह बात प्रसिद्ध है, क्योंकि इस तरह एक ही वस्तु में एक साथ अनेक समान गुण नहीं रह सकते, अत: प्रात्मा में भी एक साथ अनेक ज्ञान होना शक्य नहीं है । और यह सिद्धान्त तो आप योग को भी इष्ट है, दूसरी तरह से विचार करें कि वे विशेषण विशेष्यज्ञान या घट पट आदि के ज्ञान क्रम से होते हैं ऐसा माने तो भी बनता नहीं-दोष आते हैं । प्रतीति का अपलाप भी होता है । क्योंकि विशेषण और विशेष्य आदि को क्रम से ज्ञान जानता है ऐसा प्रतीत नहीं होता, तथा एक ज्ञान से अनेक वस्तुओं को जानना नहीं मानते हो तो सर्वज्ञ का अभाव भी हो जावेगा, मतलब-पदार्थ हैं अनन्त, उनको ज्ञान क्रम से जानेगा तो उन पदार्थों का ज्ञान होगा ही नहीं और संपूर्ण वस्तुओं को जाने विना सर्वज्ञ बनता नहीं ।
विशेषण ज्ञान और विशेष्यज्ञान को आप यदि एक साथ होना भी मान लेवें तो भी उन ज्ञानों में कार्य कारण भाव तो बन नहीं सकता, क्योंकि एक साथ होनेवाले पदार्थों में कारण यह है और यह कार्य है ऐसी व्यवस्था होती नहीं जैसे-कि गाय के दायें और बायें सींग में कार्यकारणभाव इस दायें सींग से यह बायां सींग उत्पन्न हुआ है ऐसी व्यवस्था नहीं होती है। .
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