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________________ [ २६ ] विषय पृष्ठ । विषय निश्चित विषय को पुन: निश्चित करनेकी अनुमान प्रमाणसे ब्रह्मावत को सिद्ध क्या अावश्यकता है ? १७० । ___ करना भी शक्य नहीं १६५ सर्वथा अपूर्वार्थ विषयभूत ज्ञानको प्रमाण ब्रह्मा जगत्को नाना रूप क्यों रचता मानेंगे तो प्रत्यभिज्ञान की प्रसिद्धि होगी १७१ । है ? आदत के कारण, कृपया, प्रत्यभिज्ञानको अप्रमाण मानने में बाधा १७२ अदृष्ट वश या स्वभावके कारण ? १९६-१९७ सर्वथा अपूर्वार्थको ही प्रमाणका मकड़ी स्वभावके कारण जाल नहीं विषय माना जाय तो हिचंद्रादिका बनाती अपितु क्षुधादि के कारण १६७ ज्ञान प्रमाणभूत बन बैठेगा? १७३ प्रत्यक्षप्रमाण सिर्फ विधायक ही क्यों है ? १६८ अदुष्टकारणारब्धत्व किसे कहते हैं ? १७६ देशभेद आदि भेद प्राकारों के अपूर्वार्थ खंडनका सारांश १७७-१७८ भेदोंके कारण हुआ करते हैं १९८ ब्रह्माद्वैतवादका पूर्वपक्ष १७६-१८३ अविद्या यदि अवस्तुरूप है तो उसे प्रयत्न ब्रह्माद्वैतवाद (वेदांतदर्शन का पूर्वक क्यों हटायी जाती? तत्वज्ञानका प्राग भाव ही अविद्या है ___मंतव्य) १८४-२१३ ऐसा कहना गलत है। २०० सर्वं खल्विदं ब्रह्म १८५ भेदज्ञान एवं अभेदज्ञान दोनों भी सत्य है २०१ प्रत्यक्ष प्रमाण सिर्फ विधि परक है १८६ अविद्यासे अविद्या कैसे नष्ट होती है इस भेदवादी पदार्थोंमें भेद क्यों मानते हैं ? बातको समझाने के लिये दिये हुए देशभेद, काल भेदादि से १८६ दृष्टांत गलत हैं २०२ अनादि अविद्याका नाश भी संभव है १८८ स्वप्नमें पदार्थों में भेद नहीं होते हुए भी ब्रह्माद्व तमें सुख दुःख बंध मोक्ष प्रादिकी भेद दिखायी देते हैं, ऐसे ही भेद व्यवस्था ग्राही प्रत्यक्ष पारमार्थिक नहीं हैं २०४ जनद्वारा ब्रह्माद्व तका खंडन प्रारंभ बाधक प्रमाणके विषय में ब्रह्मवादीके प्रत्यक्षसे एक व्यक्तिका एकत्व जाना जाता है या अनेक व्यक्तियोंका एकत्व ? १९० बाधक प्रमाण भिन्नविषयक है या समान सत्ता सामान्य भूत एकत्वका ग्रहण एक विषयक है ? २०६ व्यक्तिके ग्रहणसे होता है या अनेक ज्ञान ही पूर्वज्ञानका बाधक हुआ करता है २०७ व्यक्तियों के ग्रहणसे ? १६१ ब्रह्माद्वैतके खंडनका सारांश २०८-२१० विवादग्रस्त एकत्व, अनेकत्वका विज्ञानाद्वैतवादका पूर्वपक्ष अविनाभावी है १६२ २११-२१३ कल्पनाशब्दका क्या अर्थ है ? १८२-१६४ । विज्ञानाद्वैतवाद (बौद्धाभिमत) २१४-२५० लवादाक प्रश्न २०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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