________________
१४५
१२७
१४६ १४७
१५२
१५४
[ २५ ] विषय
विषय पदार्थों की शब्दानुविद्धता अनुमानसे सिद्ध
विपर्यय लक्षण अयुक्त है करना भी अशक्य है
विज्ञानाद्वैत मतका आत्मख्याति रूप क्या गिरि प्रादि पदार्थ तद् वाचक शब्द
विपर्यय जितने होते हैं ?
शंकरमतका विपर्यय ज्ञानका स्वरूप शब्दमय पदार्थ है तो बहिरे व्यक्ति को विपर्ययज्ञान अनिर्वचनीय नहीं है १४८ शब्द सुनायी देना चाहिये? १२६
स्मृति प्रमोष विचार पदार्थ और शब्दमें अभेद मानेंगे तो
[प्रभाकर का मंतव्य] १५१-१६५ देशभेद, काल भेद आदि प्रत्यक्षसिद्ध
विपर्यय ज्ञानमें रजत झलकता है या भेदोंका अपलाप होगा
१३० सीप?
१५२ नित्यरूप शब्दब्रह्मसे क्रम क्रमसे कार्यो
विपर्ययमें दो ज्ञानोंके आकार त्पत्ति होना अशक्य है
प्रभाकराभिमत स्मृति प्रमोष रूप विपर्यय अविद्याके कारण शब्दब्रह्मको उत्पत्ति
ज्ञानका खंडन विनाशशील माना है ?
१३२
प्रभाकर के यहां विवेक अख्याति संभव शब्दब्रह्मकी सिद्धि कार्यहेतुसे होती है
नहीं
१५६ या स्वभाव हेतुसे ?
१३३
स्मृतिप्रमोष शब्दका क्या अर्थ है ? १५७ शब्दब्रह्मकी सिद्धि के लिये उपस्थित
स्मृतिप्रमोष ज्ञानमें क्या झलकता है ? १५८ किया गया अनुमान
१३४
विपरीत आकार का झलकना स्मृतिशब्दाद्वैतके निरसनका सारांश १३५-१३८
प्रमोष है ऐसा तृतीय पक्ष संशयस्वरूप सिद्धि
१३३-१४१
द्विचन्द्रादिवेदन भी विपर्यय रूप होवेगा! १६१ विपर्ययज्ञानमें अख्यात्यादि
विपर्यय दो ज्ञान स्वरूप नहीं है १६२ विचार
१४२-१५०
विपर्ययज्ञानके विवाद का सारांश १६३-१६४
स्मृति प्रमोष खंडन का सारांश १६४-१६५ विपर्ययज्ञानको अख्याति प्रादि सात प्रकारसे मानने वालोंके पक्ष
अपूर्वार्थविचारका पूर्व पक्ष विपर्ययज्ञानके विषयमें चार्वाकका अपूर्वार्थत्व विचार अभिमत
(मीमांसक का अभिमत) १६७-१७८ माध्यमिकमतका विपर्यय स्वरूप और अपूर्वार्थका लक्षण
१६७-१६८ सांख्य द्वारा उसका निरसन १४४ सर्वथा अनधिगतको प्रमाणका विषय सांख्याभिमत प्रसिद्धार्थख्याति वाला
माने तो बाधा पायेगी
१६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org