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विषय
वह व्यापार धर्मी स्वभावरूप है या धर्म स्वभावरूप ?
प्रत्यक्षागम्य पदार्थ में प्रश्न नहीं हुआ करते ज्ञानस्वभाववाला ज्ञातृव्यापार
भी सिद्ध नहीं होता ज्ञातृव्यापारके खंडन का सारांश प्राप्ति परिहार विचार
निर्विकल्प प्रत्यक्षका पूर्वपक्ष बौद्धाभिमत निर्विकल्प
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७१
७३-७४
७५- ७९ ७५
हित हितका लक्षरण
पदार्थ की प्रदर्शकता ही प्राप्ति कहलाती है ७६ प्राप्तिपरिहारका सारांश
७८- ७६
८०-८५
विकल्पके धर्म द्वारा निर्विकल्पका स्वभाव क्यों नहीं दब जाता ?
निर्विकल्प और विकल्पके एकत्वको कौन
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प्रमाणका खंडन
निश्चायक ज्ञान ही प्रमाण है निर्विकल्प विशद हो और विकल्प प्रविशद
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हो ऐसा प्रतीत नहीं होता विकल्पद्वारा निर्विकल्प अभिभूत होता है ? ८६ विकल्पज्ञान में दो स्वभावकी श्रापत्ति निर्विकल्प दृश्यको विषय करता है और सविकल्प का विषय विकल्प्य है ? दृश्य और विकल्प्य दोनों को कौनसा ज्ञान ग्रहण करेगा ?
८६-११३
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जानता है ?
बौद्धके प्रत्यक्षका लक्षण अनिश्चयस्वरूप निर्विकल्पको प्रमाण माने तो अध्यवसाय को भी प्रमाण मानना होगा १७ वासना की सहायता से निर्विकल्पद्वारा
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विषय
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विकल्प पैदा किया जाता है ? निर्विकल्प द्वारा जैसे नीलादि विषय में
विकल्प पैदा किया जाता है वैसे क्षरण क्षयादिमें क्यों नहीं किया जाता ? १०० अभ्यास प्रकरण आदि नहीं होने से क्षरणादि में विकल्प पैदा नहीं कराया जाता ? १०१ निर्विकल्प में दो विरुद्ध स्वभाव मानने होंगे ?
अवग्रह ईहा और अवाय ज्ञान अनभ्यास रूप हैं
विकल्पवासनाओं का अनादि प्रवाह प्रतिबंधक के प्रभाव होने पर श्रात्मा ही विकल्पभूत ज्ञानको उत्पन्न करता है बौद्ध विकल्प ज्ञानको अप्रमाण भूत क्यों मानते हैं ? स्पष्टाकार से रहित होनेसे गृहीत ग्राही होनेसे इत्यादि ग्यारह कारणों से अप्रमाण माना है क्या ? १०६ से ११० निर्विकल्प प्रत्यक्ष के खंडन का सारांश १११-११३ शब्दाद्वैतवादका पूर्व पक्ष ११४- ११८ शब्दात विचार
( हरिका मंतव्य ) शब्दब्रह्म का स्वरूप ज्ञानों में शब्दानुविद्धता है ऐसा कौन
से प्रमाण सिद्ध करते हैं, प्रत्यक्ष से या अनुमान से ?
पदार्थ और तद् वाचक शब्दों का प्रदेश पृथक पृथक है नेत्र ज्ञान में शब्दानुविद्धता कहां है ? पदार्थों में प्रभिधानानुषक्तता क्या है ? वैखरी वाक् आदि वाणीका लक्षण
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