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विषयानुक्रमणिका विषय
विषय मंगलाचरण
महेश्वर संपूर्ण पदार्थों को क्रमसे जानता है प्रतिज्ञा श्लोकादि
२-४ या अक्रमसे? परीक्षामुखका आदिश्लोक
सन्निकर्षवादके खंडनका सारांश ५२-५४ संबंधाभिधेयादि विचार
इन्द्रियवृत्ति प्रमाणका पूर्वपक्ष प्रमाणादिपदों की व्युत्पत्ति
८-१४
इन्द्रियवृत्ति विचार प्रमाणका लक्षण
१५-१६ कारक साकल्यवादका पूर्व पक्ष १७-१८
[सांख्याभिमत ५६-५८ कारक साकल्यवाद
ज्ञातृव्यापार विचार-पूर्वपक्ष [ नैयायिकाभिमत ] १९-३३ ज्ञातृव्यापार विचार कारकसाकल्य उपचारमात्रसे प्रमाण
(प्रभाकर-मीमांसकाभिमत) ६०-७४ हो सकता है
प्रभाकरद्वारा मान्य ज्ञातृव्यापाररूप कारक साकल्यका स्वरूप क्या है सकल कारक ही कारकसाकल्यका
प्रमारणका लक्षण बाधित होता है,
ज्ञातृव्यापारका ग्राहक कौनसा स्वरूप है
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प्रमाण है, प्रत्यक्ष या अनुमान ? उनका धर्म, या संयोग, या पदार्थान्तर? २४-३२
प्रत्यक्ष के तीनों भेद ज्ञातृव्यापारके कारकसाकल्यवादका सारांश ३२-३३
ग्राहक बन नहीं सकते सन्निकर्षवादका पूर्वपक्ष
३४-४०
अनुमानप्रमाण भी उसका ग्राहक नहीं सन्निकर्षवाद [वैशेषिकाभिमत] ४१-५४
हो सकता सनिकर्षका स्वरूप
ज्ञाताका व्यापार और अर्थप्रकाशकत्वका सन्निकर्ष को प्रमाण मानने में दूषण ४२ - अविनाभाव प्रसिद्ध है योग्यता किसे कहते हैं ?
४२-४४ अनुपलंभ हेतु द्वारा भी ज्ञातृव्यापार की प्रमाता और प्रमेय से प्रमाण पृथक होना
सिद्धि नहीं होती __ चाहिये
दृश्यानुपलंभके चार भेद
६४ योगजधर्मका अनुग्रह
४७-४६ ज्ञातृव्यापार कारकोंसे जन्य है या अजन्य ? ६६ मनका महेश्वर से संबंध होना और कारकोंसे जन्य है तो क्रियात्मक है या
महेश्वरका सर्वत्र व्यापक रहना ५० । प्रक्रियात्मक ?
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