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________________ विज्ञानाद्वैतवादः २१७ इत्यभिधानात् । तृतीयविकल्पोप्ययुक्तः; अनुपलब्धेरसिद्धत्वाबाह्यार्थस्याध्यक्षादिनोपलम्भात् । किञ्च, अदृश्यानुपलब्धिस्तदभावसाधिका स्यात्, दृश्यानुपलब्धिर्वा ? प्रथमपक्षेऽतिप्रसङ्गः । द्वितीयपक्षे तु सर्वत्र सर्वदा सर्वथार्थाभावाऽप्रसिद्धिः, प्रतिनियतदेशादावेवास्यास्तदभावसाधकत्वसम्भवात् । एतेन बहिरर्थसद्भावबाधकप्रमाणावष्टम्भेन विज्ञप्तिमात्रं तत्त्वमभ्युपगम्यत इत्येतन्निरस्तम् ; तत्सद्भावबाधकप्रमाणस्योक्तप्रकारेणासम्भवात् । वाला एवं स्वभाव हेतु वाला अनुमान होता है, वह आपने विधिसाधक ( सद्भाव को सिद्ध करने वाला ) होता है, ऐसा माना है, न्यायबिन्दु ग्रन्थ के पृष्ठ ३६ पर लिखा है कि "अत्र द्वौ वस्तु साधनौ' बौद्धाभिमत तीन हेतुत्रों में से दो हेतु-कार्य हेतु और स्वभाव हेतु विधि-अस्तित्व को सिद्ध करते हैं, और तीसरा अनुपलब्धि हेतु निषेधनास्तित्व-अभाव-को सिद्ध करता है, इसलिये कार्य और स्वभाव दोनों हेतु यहां बाह्यपदार्थों का अभाव सिद्ध नहीं कर सकने से अनुमान में अनुपयोगी ठहरते हैं। तीसरा अनुपलब्धि हेतुवाला अनुमान भी अयुक्त है, क्योंकि उनकी अनुपलब्धि ही असिद्ध है, अर्थात् बाह्यपदार्थ प्रत्यक्षप्रमाण से उपलब्ध हो रहे हैं, यह भी देखना चाहिये कि अनुपलब्धि किस जाति की है अर्थात् अनुपलब्धि दो प्रकार की होती है, एक अदृश्यानुपलब्धि और दूसरी दृश्यानुपलब्धि, इनमें से कौन सी अनुपलब्धि बाह्य पदार्थों के अभाव को सिद्ध करती है- यदि अदृश्यानुपलब्धि बाह्यपदार्थों का अभाव सिद्ध करे-तो अति प्रसंग दोष आता है-अर्थात् अदृश्य-जो दिखने योग्य नहीं हैं उनका अभाव है, ऐसा माना जाये तो परमाणु पिशाच आदि बहुत से पदार्थ मौजूद तो हैं. पर वे उपलब्ध नहीं होते-दिखाई नहीं देते हैं तो क्यों इतने मात्र से उनका प्रभाव माना जा सकता हैअर्थात् नहीं माना जा सकता, उसी प्रकार अनुपलब्धि हेतु से-अनुपलब्धिजन्य अनुमान से-पदार्थों का अभाव होना तो मान नहीं सकते अर्थात् अनुपलब्धि हेतुजन्य अनुमान बाह्यपदार्थों का अभाव सिद्ध नहीं कर सकता है, दृश्यानुपलब्धि हेतुजन्य जो अनुमान है उससे यदि बाह्य वस्तुओं का अभाव सिद्ध करना चाहो अर्थात् "न सन्ति बाह्यपदार्थाः दृश्यत्वे सति अप्यनुपलंभात्" बाह्यपदार्थ नहीं है (प्रतिज्ञा) क्योंकि वे दिखने योग्य होने पर भी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं (हेतु) सो इस अनुमान के द्वारा सभी जगह सर्वदा सर्व प्रकार से पदार्थों का अभाव सिद्ध नहीं होगा, किन्तु किसी जगह किसी समय ही उनका अभाव सिद्ध होगा, विज्ञानाद्वैतवादी ने कहा था कि बाह्यपदार्थों का अस्तित्व बाधक प्रमाण से खण्डित होता है अत: विज्ञानमात्र एक तत्त्व हमारे द्वारा स्वीकार २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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