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________________ प्रमेयकमलमार्त्तण्डे मानप्रत्ययविषयत्वेन सत्त्वसम्भवात् । बाध्यबाधकभावश्चानन्तरमेव ब्रह्मा तप्रघट्टके प्रपञ्चित । । तन्नाभावोऽध्यक्षेणाधिगम्यः । २१६ J नाप्यनुमानेन अध्यक्षविरोधेऽनुमानस्याप्रामाण्यात् । "प्रत्यक्षनिराकृतो न पक्ष : " [ इत्यभिधानात् । न च बाह्यार्थावेदकाध्यक्षस्य भ्रान्तत्वान्न तेनानुमानबाधेत्यभिधातव्यम्; अन्योऽन्याश्रयात् सिद्ध ह्यर्थाभावे तद्ग्राह्यध्यक्षं भ्रान्तं सिद्धय ेत् तत्सिद्धौ चार्थाभावानुमानस्य तेनाऽबाधेति । किच, तदनुमानं कार्यलिङ्गप्रभवम्, स्वभावहेतुसमुत्थं वा, अनुपलब्धिप्रसूतं वा ? न तावत्प्रथमद्वितीयविकल्पौ; कार्यस्वभावहेत्वो विधिसाधकत्वाभ्युपगमात् । " अत्र द्वौ वस्तुसाधनौ" [ न्यायबि० पृ० ३६ ] पूर्वज्ञान का जो विषय है वह बाध्यभाव है, इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा पदार्थों का प्रभाव जाना नहीं जाता है । अनुमान प्रमाण के द्वारा भी पदार्थों का अभाव सिद्ध करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि प्रत्यक्षप्रमाण के विरोधी विषय में अनुमान प्रवृत्त होगा तो वह अनुमानाभास कहलावेगा, सर्वसम्मत और विशेष करके आपके लिये सम्मत यह बात है कि प्रत्यक्ष से जिसका निराकरण होवे वह पक्ष या साध्य नहीं बन सकता है । भावार्थ - ' स्वरूपेणैव स्वयमिष्टो ऽनिराकृतः पक्षः " बौद्ध के न्यायबिन्दु ग्रन्थ में लिखा है कि जो स्वरूप से स्वयं इष्ट हो, प्रत्यक्षप्रमारण से बाधित न हो वही अनुमान के द्वारा सिद्ध किया जाता है, उसीको पक्ष बनाते हैं, प्रत्यक्ष के द्वारा बाधित नहीं होने पर भी अपने को सिद्ध करना इष्ट हो वही साध्य होता है, प्रत्यक्ष, अनुमान, प्रतीति और स्ववचन इनके द्वारा जिनका निराकरण न हो सके वही पक्ष है, इस प्रकार का पक्ष के विषय में कथन है, अतः यहां पर प्रत्यक्ष बाधित जो विज्ञानाहै उसे यदि अनुमानके द्वारा सिद्ध करोगे तो वह अनुमान सत्य नहीं कहलावेगा । विज्ञानवादी - बाह्य पदार्थों की सत्ता सिद्ध करने वाला प्रत्यक्षज्ञान सत्य नहीं है, अतः उसके द्वारा प्रद्वैतसिद्ध करने वाला अनुमान बाधित नहीं होता है । जैन - यह कथन गलत है, क्योंकि इस तरह से तो अन्योन्याश्रय दोष आयेगा, देखिये - पहिले बाह्य वस्तुओं का प्रभाव सिद्ध हो तब बाह्यार्थग्राही प्रत्यक्ष में असत्यता सिद्ध होगी, और उस प्रत्यक्ष में प्रसत्यता सिद्ध होने पर बाह्य पदार्थों का अभाव सिद्ध करने वाले अनुमान की सिद्धि होगी, इस प्रकार दोनों ही सिद्ध न हो सकेंगें । दूसरी बात यह है कि बाह्यपदार्थोंका अभाव सिद्ध करने वाले अनुमानमें हेतु कौनसा रहेगा - कार्य हेतु या स्वभाव हेतु अथवा श्रनुपलब्धि हेतु इनमें जो कार्य हेतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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