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विज्ञानाद्वैतवादः
" अयमेवेति यो ह्येष भावे भवति निर्णयः । नैष वस्त्वन्तराभावसंवित्त्यनुगमादृते ||"
[ मी० श्लो० प्रभावपरि० श्लो० २० ]
इत्यभिधानात् । न चार्थाभावा प्रत्यक्षाधिगम्यः; बाह्यार्थ प्रकाशकत्वेनैवास्योत्पत्तेः । न च प्रत्यक्ष प्रतिभासमानस्याप्यर्थस्याभावो विज्ञप्तिमात्रस्याप्यभावानुषङ्गात् । न च तैमिरिकप्रतिभा से प्रतिभासमानेन्दुद्वयवन्निर्मलमनोऽक्षप्रभवप्रतिभास विषयस्याप्य सत्त्वमित्यभिधातव्यम् ; यतस्तै मिरिकप्रतिभासविषयस्यार्थस्य बाध्यमानप्रत्ययविषयत्वादसत्त्व युक्तम्, न पुनः सत्यप्रतिभास विषयस्याऽबाध्य -
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का प्रभाव सिद्ध नहीं होता है तब तक विज्ञानाद्वैत ही एक तत्व है ऐसा निश्चय नहीं हो सकता है । अन्यत्र भी लिखा है
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"विज्ञानमात्र ही तत्व है" इस प्रकार का जो निर्णय होता है वह अन्य बाह्य वस्तुओं के अभाव का ज्ञान हुए विना नहीं हो सकता है ।। १ ।। इत्यादि, सो इससे यही मतलब निकलता है कि बाह्य वस्तुतत्त्व का प्रभाव जाने विना आप विज्ञानाद्वैतवादी का विज्ञानमात्र तत्त्व सिद्ध नहीं हो सकता ।
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विज्ञानाद्वैतवादी बाह्यपदार्थों का जो प्रभाव करते हैं वह किस प्रमाण के द्वारा करते हैं ? प्रत्यक्षप्रमाण के द्वारा बाह्यपदार्थों का अभाव कर नहीं सकते, क्योंकि वह तो बाह्य पदार्थों को प्रकाशित करता हुआ ही उत्पन्न होता है, प्रत्यक्षज्ञान मैं बाह्यपदार्थ प्रतीत होते हैं तो उनका अभाव कर नहीं सकते हो, अन्यथा आपके विज्ञानमात्र तत्त्व का भी अभाव हो जायेगा, अर्थात् - प्रत्यक्ष में पदार्थ झलकते हैं तो भी उनको नहीं मानते हो तो श्रापके प्रत्यक्ष में झलकने वाला विज्ञानमात्र तत्त्व भी अमान्य हो जावेगा, यदि कहा जावे कि नेत्र रोगीको नेत्रज्ञान में एक ही चन्द्रमा में दो चन्द्र का ज्ञान होता है; किन्तु दो चन्द्र तो रहते नहीं, उसी प्रकार नेत्रादि इन्द्रियां और मन इस सभी सामग्री के ठीक रहते हुए भी जो ज्ञान होता है उसके विषय भूत पदार्थ भी प्रभाव रूप रहते हैं सो ऐसा कहना भी शक्य नहीं है, देखिये - नेत्र रोगी को जो दो चन्द्र का प्रतिभास होता है वह तो बाधित है अर्थात् दो चन्द्र हैं नहीं, अतः द्विचन्द्रज्ञान असत्य कहलाता है, किन्तु जिसका प्रतिभास सत्य है, जिसमें किसी प्रमाण से बाधा नहीं है वह पदार्थ तो सद्भाव रूप ही है बाध्य क्या है और बाधक क्या है इस बात का निर्णय तो अभी ब्रह्माद्वैत के प्रकरण में कर ही आये हैं अर्थात् विपरीत पूर्वज्ञान को असत्य बतानेवाला उत्तरज्ञान तो बाधक भाव है और उस
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