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प्रमेयकमलमार्तण्डे
विद्यानिमितत्वेन परमार्थसत्वेपि अन्योन्याश्रयो द्रष्टव्यः । न चानाद्यऽविद्योच्छेदे प्रागभावो दृष्टान्तः; वस्तुव्यतिरिक्तस्यानादेस्तुच्छस्वभावस्यास्याऽसिद्ध ।
यदपि-'तत्त्वज्ञानप्रागभावरूपैवाविद्या' इत्याद्यभिहितम् ; तदप्यभिधानमात्रम् ; प्रागभावरूपत्वे तस्या भेदज्ञानलक्षणकार्योत्पादकत्वाभावानुषङ्गात्, प्रागभावस्य कार्योत्पत्तौ सामर्थ्यासम्भवात् । न हि घटप्रागभावः कार्यमुत्पादयन्दृष्टः । केवलं घटवत् प्रागभावविनाशमन्तरेण तत्त्वज्ञानलक्षणं कार्यमेव नोत्पद्यत । अथ न भेदज्ञानं तस्याः कार्यम्, किं तर्हि ? भेदज्ञानस्वभावैवासौ, तन्न; एवं सति प्रागभावस्य भावान्तरस्वभावतानुषङ्गात् । न च ज्ञानस्य भेदाभेदग्रहणकृता विद्यतरव्यवस्था,
परमार्थता सिद्ध हो, इस तरह अभेद विद्यानिर्मित है यह बात सिद्ध नहीं होती है। अनादि अविद्या का नाश होने में आपने प्रागभाव का दृष्टान्त दिया है सो वह गलत है, क्योंकि वस्तु से भिन्न सर्वथा अनादि तुच्छाभावरूप इस प्रागभाव की असिद्धि है।
तथाप्रापने जो ऐसा कहा है कि "तत्वज्ञान का प्रागभाव ही अविद्या है" सो केवल कथन मात्र है, यदि अविद्या को प्रागभावरूप माने तो उससे भेदज्ञान लक्षण कार्य की उत्पत्ति नहीं होगी, क्योंकि प्रागभाव में कार्य को उत्पन्न करने की सामर्थ्य नहीं है, प्रागभाव के नाश हुए बिना जैसे घटरूप कार्य नहीं होता वैसे ही अविद्यारूप प्रागभाव का नाश हुए बिना तत्त्वज्ञानरूप कार्य उत्पन्न ही नहीं होता है।
भावार्थ-जैसे घट का प्रागभाव घटरूप कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकता है, उसी प्रकार विद्या का प्रागभावरूप अविद्या विद्यारूप कार्य को उत्पन्न नहीं कर सकती, मतलब वस्तु का जो प्रागभाव है उसका नाश हुए बिना आगामी कार्य नहीं होता है, जैसे कि घट का प्रागभाव जो स्थास कोश, कुशूल है उनका नाश हुए बिना घट नहीं बन सकता, उसी प्रकार अविद्या का नाश हुए विना विद्या उत्पन्न नहीं हो सकती, और एक बात यह है कि घटादि वस्तु का जो प्रागभाव है उसका नाश होने मात्र से आगामी घटादि पर्यायरूप कार्य हो ऐसी भी बात नहीं है, अर्थात् घट का प्रागभाव जो कोशकुशूल है उसे यों ही बिगाड़ कर खतम कर दिया घटाकर नहीं बना ऐसा तो हो सकता है, पर इतना जरूर है कि प्रागभाव के नाश हए विना आगामी कार्य नहीं होता है, अतः तत्त्वज्ञान का प्रागभाव अविद्या है ऐसा कहना गलत है।
आप यदि कहें कि भेदज्ञान अविद्या का कार्य नहीं है, किन्तु भेदज्ञान स्वभावरूप अविद्या है, सो ऐसा कहना ठोक नहीं-क्योंकि ऐसी मान्यता में आपको
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