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________________ १८० प्रमेयकमलमार्तण्डे उत्पन्न होते हैं ? (३) दृश्यमान या अदृश्यमान इन पदार्थों का कभी पूर्ण रूप से प्रभाव होता है क्या ? (४) हम जो चेतन जीव हैं सो किस प्रकार दुःखों से मुक्त हो सकते हैं या मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ? (५) मोक्ष का स्वरूप क्या है ? ( ६ )। ___ इस प्रकार के इन सब प्रश्नों का ब्रह्माद्वैतमतानुसार समाधान किया जाता है प्रथम प्रश्न का समाधान विश्व में जो अनेकता-विविधता, घट, पट, जीव, पशु, मनुष्य आदि पदार्थ रूप से भिन्नता दिखाई देती है उसका कारण अविद्यावासना है, अर्थात् अविद्यावासना के कारण ही हमको अखंड ब्रह्म में खंड व भेद मालूम पड़ता है, अविद्यावासना के नाश होने पर एक परमब्रह्म ही अनुभव में प्राता है। द्वितीय प्रश्न का समाधान इन चेतन अचेतन पदार्थों के उत्पन्न होने में कारण स्वभाव ही है, इस जगत् या सृष्टि का उपादान कारण तथा निमित्त कारण भी ब्रह्म ही है, कहा भी है ___"कार्यमाकाशादिकं बहुप्रपञ्चजगत्, कारणं परमब्रह्म शक्तिद्वयवदज्ञानोपहितं चैतन्यं स्वप्रधानतया निमित्तं, स्वोपाधिप्रधानतयोपादानं च भवति" परमब्रह्म का कार्य जो आकाश, वायु, जल आदि हैं वह सब बहुविस्तार वाला ब्रह्म ही है, और कारण ब्रह्म है ही, अज्ञान की दो शक्तियां हैं -प्रावरण और विक्षेप, इन दो से जब चैतन्य सहित होता है तब अपनी प्रधानता से उपादान कारण और अपनी उपाधि की प्रधानता से निमित्त कारण बनता है, जैसे- "यथा लूता तन्तुकार्य प्रति स्वप्रधानतया निमित्तं स्वशरीरप्रधानतयोपादानं च भवति"। जिस प्रकार मकड़ी रेशम धागे का निमित्त और उपादान दोनों कारणरूप स्वयं है, अपनी प्रधानता से तो निमित्त कारण है और स्वशरीर की प्रधानता से उपादान कारण है, अन्यत्र भी कहा है उर्णनाभ इवाशूनां चन्द्रकान्त इवाम्भसाम् । प्ररोहाणामिव प्लक्षः स हेतु: सर्वजन्मिनाम् ॥ १ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001276
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 1
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1972
Total Pages720
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size15 MB
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