________________
ब्रह्माहतवाद पूर्वपक्ष
आगे आचार्य ब्रह्माद्वैतवाद का खण्डन करेंगे अतः उस ब्रह्माद्वैतवाद का वर्णन उन्हींकी मान्यता के अनुसार किया जाता है जिससे कि पाठकगण ब्रह्माद्वैतवादके मत को सुगमता से समझ सकें।
ब्रह्माद्वैतवाद शब्द का अर्थ
ब्रह्म-अद्वैत-वाद इस प्रकार ये तीन पद हैं । "ब्रह्म च तत् अद्वैतं च ब्रह्माद्वैतं" यह कर्मधारय समास है । "ब्रह्माद्वैतस्यवादः" "ब्रह्माद्वैतवादः" अद्वत-प्रखण्ड एक ब्रह्म ही है, अन्य कुछ भी नहीं है-अर्थात् जगत् के चेतन अचेतन सब ही पदार्थ ब्रह्म स्वरूप ही हैं ऐसी जो मान्यता है वही ब्रह्माद्वैतवाद है, अद्वत का अर्थ है और दूसरा कोई नहीं-केवल एक वही, इसी तरह विज्ञानाद्वैत, चित्राद्वत, शून्यात, शब्दावत आदि शब्दों का भी मतलब-अर्थ-सर्वत्र समझना चाहिये, ये सब ही प्रवादीगण एक रूप चेतन या अचेतनरूप या शून्यरूप ही समस्त विश्व को मानते हैं, ये भेदों को-घट, पट, जीव आदि किसी प्रकार के भेद-द्वित्वको स्वीकार नहीं करते हैं, इन्हें अभेदवादी भी कहा जाता है, अस्तु।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म नेह नानास्ति किंचन ।
पारामं तस्य पश्यन्ति न तं पश्यति कश्चन ।।१।।
जगत् के दृश्यमान या अदृश्यमान जितने भी पदार्थ हैं वे सब एक मात्र ब्रह्मस्वरूप हैं, संसार में अनेक या नानारूप कुछ भी नहीं है, उस अखण्ड परमब्रह्म को जो कि एक ही है कोई भी नहीं देख सकता है, हाँ; उस ब्रह्म की ये जो चेतन अचेतन पर्यायें हैं उन्हें ही हम देख सकते हैं एवं देख रहे हैं।।
अब यहां पर अनेक प्रश्न होते हैं कि जब एक ब्रह्मस्वरूप ही पदार्थ है, अन्य कुछ नहीं है तो यह सारा साक्षात् दिखायी दे रहा पदार्थ समुदाय क्यों प्रतीत होता ? (१) जब ये पदार्थ ब्रह्मकी विवर्तरूप हैं तो किस कारण से ये विवर्त या नाना पर्यायें उत्पन्न हुई हैं ? (२) ये सब विवर्त या चेतन अचेतन पदार्थ किस क्रम से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org