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ज्ञातृव्यापारविचारः भावः सर्वसर्वज्ञताप्रसङ्ग कारकान्वेषणवैयर्थ्यं च स्यात् । प्रथानित्यः; तदयुक्तम् ; अजन्यस्वभावभावस्यानित्यत्वेन केनचिदप्यनभ्युपगमात् । भवतु वाऽनित्यः; तथाप्यसौ कालान्तरस्थायी, क्षणिको वा ? न तावत्कालान्तरस्थायी ;
"क्षणिका हिसा न कालान्तरमवतिष्ठते" [ शाबर भा० ] इति वचसो विरोधप्रसङ्गात् । कारकान्वेषणं चापार्थकम्-तत्कालं यावत्तत्फलस्यापि निष्पत्त: । क्षणिकत्वे ; विश्वं निखिलार्थप्रतिभासरहितं स्यात् क्षणानन्तरं तस्यासत्त्वेनार्थप्रतिभासाभावात् । द्वितीयादिक्षणेषु स्वत एवात्मनो व्यापारान्तरोत्पत्तीयं दोषः; इत्यप्यसङ्गतम्; कारकानायत्तस्य देशकालस्वरूपप्रतिनियमायोगात् । किञ्च; अनवरतव्यापाराभ्युपगमे तज्जन्यार्थप्रतिभासस्यापि तथा भावात् तदवस्थः सुप्ताद्यभावदोषानुषङ्गः । तन्नाऽजन्योऽसौ।
भावार्थ-सभी को समान ज्ञान होगा कोई भी पण्डित, मूर्ख इस तरह से विषम ज्ञान वाले नहीं हो सकेंगे। विद्यालयों में सभी विद्यार्थी समान श्रेणी में उत्तीर्ण होंगे, तथा कोई छद्मस्थ-अल्पज्ञानी नहीं रहेगा, क्योंकि सभी जीवों में ज्ञातृव्यापार समान रूप से है । अत: आप प्रभाकर ज्ञातृव्यापार नित्य है ऐसा नहीं कह सकते ।। यदि ज्ञाता का व्यापार अनित्य है ऐसा कहा जावे तो भी ठीक नहीं क्योंकि जो अजन्य-किसीसे पैदा नहीं होता है वह अनित्य है ऐसा किसी ने भी नहीं माना है अच्छा यदि उसे जबर्दस्ती अनित्य भी मान लिया जावे तो भी यह बतानो कि वह कुछ काल तक रहता है या नहीं ? वह कालान्तर स्थायी हो नहीं सकता, क्योंकि "क्षणिका हि सा न कालान्तरमवतिष्ठते" ज्ञाता की व्यापार रूप क्रिया क्षणिक है, द्वितीयादि समय में वह रहती नहीं ऐसा "शाबरभाष्य में" लिखा है, सो कालान्तर स्थायी मानने पर इस शाबरभाष्य के कथन से विरोध आवेगा-तथा कारकों का अन्वेषण करना भी व्यर्थ हो जायगा-क्योंकि कालान्तर स्थायी उस ज्ञातृव्यापार से ही पदार्थ के जानने रूप फल की निष्पत्ति होजावेगी, ज्ञाता के व्यापार को क्षणिक मानने पर सम्पूर्ण विश्व प्रतिभास-(ज्ञान) से रहित हो जावेगा क्योंकि वह ज्ञाता का व्यापार एकक्षण में हो उत्पन्न होकर नष्ट हो जावेगा और उसका असत्त्व हो जायगा, अतः पदार्थ का प्रतिभास नहीं होगा।
प्रभाकर-दूसरे आदि क्षणों में अपने प्रापही व्यापारान्तर होते रहते हैं अत: यह उपरोक्त दोष नहीं आवेगा।
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