________________
प्रमेयकमलमार्तण्डे
तज्ज्ञानं चान्यस्मादभावप्रमाणात्, प्रमेयाभावाद्वा ? तत्राद्यपक्षेऽनवस्थाप्रसङ्गः-तस्याप्यन्यस्मादभावप्रमाणात्परिज्ञानात् । प्रमेयाभावात्तज्ज्ञाने च-इतरेतराश्रयत्वम् ।
किञ्चासौ ज्ञातृव्यापारः कारकैर्जन्यः, अजन्यो वा ? यद्यजन्यः, तदासावभावरूपः, भावरूपो वा? प्रथमपक्षोऽयुक्तः; तस्याभावरूपत्वेऽर्थप्रकाशनलक्षणफलजनकत्वविरोधात् । विरोधे वा फलाथिनः कारकान्वेषणं व्यर्थम्, तत एवाभिमतफलसिद्ध विश्वमदरिद्र च स्यात् । अथ भावरूपोऽसौ; तत्रापि किं नित्यः, अनित्यो वा ? न तावन्नित्यः; अन्धादीनामप्यर्थदर्शनप्रसङ्गात् सुप्तादिव्यवहारा
जायगा ऐसा कहो तो अनवस्था पाती है-अर्थात् प्रथम प्रमाण पंचक का अभाव सिद्ध करनेके लिये प्रभाव प्रमाण आया वह प्रमाण पंचकके निवृत्त होने पर आया है ऐसा जानने के लिये दूसरा प्रभाव प्रमाण आवेगा और उस दूसरे के लिये तीसरा आयेगा ऐसे चलते चलते कहीं ठहरना होगा नहीं, अतः अनवस्था दोष स्पष्ट है । यदि प्रमेय के प्रभाव से प्रमाण पंचक के अभाव का निर्णय किया जायेगा तो अन्योन्याश्रय दोष होगा अर्थात् प्रमेयाभाव सिद्धि होने पर प्रमाण पंचकाभाव की सिद्धि और फिर उससे प्रमेयाभाव की सिद्धि होगी।
अच्छा आप प्रभाकर यह तो कहिये कि ज्ञाता का व्यापार कारकों के द्वारा उत्पन्न होता है या नहीं ? यदि नहीं होता तो वह अभाव स्वरूप है या भावस्वरूप है ? यदि वह अभाव रूप है तो बड़ा भारी दोष आता है और वह ऐसा है कि ज्ञाता का व्यापार अभावरूप है तो वह अर्थप्रकाशन रूप फल को पैदा नहीं करेगा, यदि अभावरूप होकर भी वह कार्य करेगा तो फलार्थीजन कारकों का अन्वेषण क्यों करेंगे, अभावरूप व्यापार से अर्थ प्रकाशन होनेसे सारा जगत् धनी हो जायेगा, मतलब-बिना प्रयत्न के किसी भी कार्य की सिद्धि होने से धनादि कार्य भी ऐसे हो अपने आप होने लग जायेंगे । ज्ञाता का व्यापार कारक से पैदा न होकर भी वह भावरूप है ऐसा कहो तो प्रश्न होता है कि वह नित्य है कि अनित्य है ? यदि नित्य है ऐसा माना जाय तो अंधे आदि जीवों को भी ज्ञान होने लग जायगा, तथा यह सोया है यह मूच्छित है, इत्यादि व्यवहार भी समाप्त हो जायेगा, सभी व्यक्ति सर्वज्ञ बन जायेंगे, कारकों का अन्वेषण व्यर्थ होगा, इतने सारे दोष आ पड़ेंगे, क्योंकि ज्ञाता का व्यापार तो नित्य है इसलिये । तथा प्रत्येक को प्रत्येक पदार्थ का ज्ञान भी प्रत्येक अवस्था में होगा हो होगा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.