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त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना
विषय के अनेक ग्रन्थ पाये जाते हैं । इन दोनों ही परम्पराओंमें लोककी प्ररूपणा प्रायः समान रूपसे पायी जाती है, मतभेद कचित् किंचित् ही पाये जाते हैं । ऐसे मतभेद तो प्रायः एक परम्परा के भीतर भी विद्यमान हैं ।
बृहत्क्षेत्रसमास यह जिनभद्र - गणि क्षमाश्रमण द्वारा प्रणीत है । इसका रचनाकाल प्रायः विक्रमकी सातवीं शताब्दि होना चाहिये । इनके द्वारा विरचित एक बृहत्संग्रहणी सूत्र भी रहा है । वर्तमान 'बृहत्संग्रहणी ' चन्द्रमहर्षि द्वारा विरचित एक अर्वाचीन ग्रन्थ है । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में बृहत्संग्रहणी सूत्र (त्रैलोक्यदीपिका ) ग्रन्थों की परम्परा प्राचीन कालसे अब तक प्राप्त है । त्रिलोकप्रज्ञप्ति ( ४ २१७, २१९, २०२९, २४४८, ८-२७२, ३८७ आदि )
सग्गायणी, संगोयणी, संगायणी या संग्राहणी आदि पदोंके द्वारा जिस ग्रन्थका उल्लेख किया गया है वह ऐसा ही कोई संग्रहणी सूत्र सम्भवत: प्रतीत होता है । त्रिलोकप्रज्ञप्तिके द्वितीय महाधिकार में गा. २२ के द्वारा शर्करा आदि छह पृथिवियोंका बाहल्य बतला कर आगे गाथा २३ के द्वारा भी प्रकारान्तरसे उनका बाहुल्य फिरसे बतलाया है । यह बाहल्यप्रमाण प्रायः अन्य दिगम्बर ग्रन्थमें तो नहीं देखा जाता, पर वर्तमान बृहत्संग्रहणीमें वह अवश्य उपलब्ध होता है । यथा
असीर बत्तीसडवीस-वीस - अट्ठार- सोल - अडसहस्सा |
लक्खुवीर पुढविपिंडो वणुदहि-घणवाय-तणुत्राया ॥ बृ. सं. सू. २१२.
प्रस्तुत बृहत्क्षेत्रसमास ग्रन्थ में १ जम्बूद्वीपाधिकार, २ लवणाब्ध्यधिकार, ३ घातकीखण्डद्वीपाधिकार, ४ कालोदध्यधिकार और ५ पुष्करवरद्वीपार्वाधिकार, ये पांच अधिकार हैं । इनमें क्रमशः ३९८ + ९० + ८१ + ११ + ७६ = ६५६ गाथायें हैं ।
(१) जंबूद्वीपाधिकार में जम्बूद्वीपादि स्वयम्भूरमणान्त सत्र द्वीप समुद्रों की अदाई उद्धार सागरोंके समयों प्रमाण संख्या बतला कर मानुषक्षेत्र व जम्बूद्वीप की सविस्तार परिधि, जम्बूद्वीपकी जगती, भरतादिक सात क्षेत्रों व हिमवदादिक छह कुलपर्वतों एवं वैताढ्य गिरिका विस्तार, करणसूत्रपूर्वक वाण, जीवा, धनुष्पृष्ठ, बाहा ( पार्श्वभुजा ), क्षेत्रफल, घनफल, सब पर्वत के ऊपर स्थित कूटों की संख्या, नाम व उंचाई आदि: दक्षिणभरतस्थ शाश्वत नगरी अयोध्याका विस्तारादि, वैताढ्य (विजयार्ध) प्ररूपणा, वृषभ कूट, पद्मद्रइ, गंगाप्रपातकुंड, नदीविस्तारादि, हैमवतादि क्षेत्रस्थ मनुष्यों का प्रमाणादिक, देव- उत्तरकुरु, जम्बूवृक्ष, देव- उत्तरकुरुस्थ मनुष्यों का प्रमाणादिक, प्ररूपणा, विजय व वक्षार पर्वतादिकों का विस्तारादि, विदेह क्षेत्र में तीर्थंकरादिकोंका अवस्थान व जम्बूद्वीपमें चन्द्र-सूर्यादिकोंकी संख्या, इत्यादिक विषयोंकी प्ररूपणा त्रिलोकप्रज्ञप्ति के ही समान की गई है ।
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