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त्रिलोकप्राप्तिकी अन्य ग्रन्थोंसे तुलना
(७५) यहां प्रकरण पाकर गा. ३९५.९६ की टीकामें टीकाकार श्री मलयगिरि मूरिके द्वारा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र व ताराओंकी प्ररूपणा विस्तारपूर्वक उसी प्रकार की गई है जैसे कि त्रिलोकप्रज्ञप्तिके सातवें महाधिकारमें ।
(२) लवणाध्यधिकारमें लवणसमुद्रका विस्तार, परिधि, उसमें स्थित पाताल, जलवृद्धि-हानि, वेलंधर नागकुमार देवोंकी संख्या अदि, गोतीर्थ, गौतमीप, सूर्यद्वीप, चन्द्रद्वीप, छप्पन अन्तरद्वप, अन्तर द्वीपस्थ मनुष्यों का उत्सेधादिक, लवणसमुद्रके अत्रगाह व उत्सेधका प्रमाण एवं चन्द्र-सूर्यादिककी संख्या, इत्यादिक विषयोंकी प्ररूपणा की गई है ।
(३) घातको खण्ड अधिकारमें घातकीखण्ड द्वीपके विस्तार व परिधिका प्रमाण, इपुकार पर्वत, मेरु पर्वत, भरतादिक क्षेत्रोंका आकार व विस्तारादि, हिमवदादिक पर्वतोंका विस्तार, द्रह व नदीकुण्डादिकों का उत्सेधादि, घातकी वृक्ष, मेरु पर्वतोंका उत्सेधादिक, विजयों व वक्षार . पर्वतोंका विस्तार तथा चन्द्रसूर्यादिकोंकी संख्या, इन सबका वर्णन किया गया है ।
(४) चतुर्थ अधिकारमें कालोद समुद्रके विस्तार, परिधि, द्वारान्तर, चन्द्र-सूर्यद्वीप, कालोद समुद्रके जलका स्वरूप, उसके अधिपति देव एवं वहां चन्द्रसूर्यादिकोंकी संख्या बतलाई गई है।
(५) पांचवें अधिकारमें पुष्करद्वीप व उसके मध्यमें स्थित मानुषोत्तर पर्वतके विस्तारादिका प्रमाण, इषुकार पर्वत, वैताट्य पर्वत, भरतादिक क्षेत्रों एवं हिमवदादिक पर्वतोंके विस्तारादिक, उत्तरकुरुस्थ पद्म व महापद्म वृक्षों एवं उनके अधिपति देवों, विजय व वक्षारादिकोंके विस्तारादि तथा चन्द्र-सूर्यादिकोंकी संख्या आदिकी प्ररूपणा की गई है।
यहां बृहक्षेत्रसमास व त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदिक प्रन्यों में गणितनियोंमें प्रायः समानता ही देखी जाती है । उदाहरणार्य परिधि व क्षेत्रफल निकालनेका करणसूत्र
विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वहस्स परिरओ होई । विक्खंभपायगुणिओ परिरओ तस्स गणियपयं ॥ ब. क्षे.१-७. समववासवंग्गे दहगुणिदे करणि परिधओ होदि । वित्थारतुरिमभाग परिधिहदे तस्स खेत्तफलं । त्रि. प्र. १-११७. तिगुणियवासं परिही दहगुणवित्थारवग्गमूलं च ।
परिहिहदवासतुरिमं बादर मुहमं च खेत्तफलं ॥ त्रि. सा. ३११. बाणके निकालनेकी रीति
जीवा-विक्खंभाणं वग्गविससस्स वग्गमूलं जं । विक्खमाओ सदं तस्सद्धमिसु विषाणाहि ॥ बू.. १-४१.
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