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________________ (३८) त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना ९ सिद्धलोक- महाधिकारमें सिद्धाका क्षेत्र, उनकी संख्या, अवगाहना और सुखका वर्णन करके जिस भावनासे सिद्धत्व पद प्राप्त होता है उसका कथन किया गया है। इस प्रकरणकी बहुतसी गाथायें समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकायमें दृष्टिगोचर होती हैं। ६ त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी अन्य ग्रंथोंसे तुलना १ समयसार, पंचास्तिकाय व प्रवचनसार ये तीनों भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यविरचित द्रव्यार्थिकनयप्रधान आध्यात्मिक ग्रन्थ हैं । इनका रचनाकाल सम्भवतः विक्रमकी प्रथम शताब्दि है। तिलोयपण्णातिका नौवा अधिकार सिद्धत्व महाधिकार है। इसमें गाथा १८-६५ में सिद्धत्वकी हेतुभूत भावनाका वर्णन किया गया है । इन गाथाओंमें कितनी ही गाथायें प्रवचनसार व समयसारकी ज्योंकी त्यों हैं, ४-६ गाथायें पंचास्तिकायकी भी हैं । वे गाथायें स्वयं तिलोयपण्णत्तिकारके द्वारा निर्मित न होकर उपर्युक्त ग्रन्थोंसे वहां ली गई हैं, यह हम सिद्ध करनेका प्रयत्न करते हैं-- (१) तिलोयपण्णत्तिके प्रथम महाधिकारमें गा. ९३ के द्वारा उपमा-मानके आठ भेदोंका निर्देश करके आगेकी ९४वी गाथामें तीन प्रकारके पल्यों व उनके उपयोगकी सूचना की गई है। ठीक इसके पश्चात् ही प्रकरणके पूर्वापर सम्बन्धकी कुछ भी सूचना न करके पुद्गलभेदोंका निर्देश करनेवाली निम्न गाथा दी गई है खंदं सयलसमत्थं तस्स य अद्ध भणंति देसो त्ति । अद्धद्धं च पदेसो अविभागी होदि परमाणु ॥ ९५ ॥ यह गाथा पंचास्तिकार्यकी है । वहाँ इस गाथाके पूर्वमें निम्न गाथा उपलब्ध होती है खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होति परमाणू । इदि ते चदुन्धियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा ।। ७४ ।। वहां यहांसे पुद्गल-अस्तिकायका प्रकरण प्रारम्भ होता है । इस गाथामें स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु, ये चार पुद्गल-अस्तिकायके भेद बतलाये गये हैं। ठीक इसके पश्चात् ही प्रस्तुत गाथाके द्वारा उन चारों पुद्गलभेदोंका लक्षण बतलाया गया है। इससे सुस्पष्ट है कि उस गाथाकी स्थिति पंचास्तिकायमें कितनी दृढ़ व सुसंगत है। यदि बंध सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसो ति। अदद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी ॥ पंचा. ७५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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