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ग्रंथका विषयपरिचय
(२०) प्रतीत होता है और वर्तमानमें जो निर्वाण संवत् और शक संवत् प्रचलित है उनसे भी यही मत सिद्ध होता है । इस समय प्रचलित निर्वाण संवत् २४७७ और शक संवत् १८५२
है जिससे उनके बीच ठीक ६०५ वर्षका अन्तर पाया जाता है। निर्वाण संवत् कार्तिक . शुक्ल १ से तथा शक संवत् चैत्र शुक्ल १ से प्रारंभ होता है जिसमें ५ माह के अतरकी व्युत्पत्ति भी ठीक बैठ जाती है ( गा. १४९६-१५१०)।
___ वीरनिर्वाणसे चतुर्मुख कल्कीके राज्य पर्यन्त एक हजार वर्ष व्यतीत हुए जिसकी इतिहासपरंपरा तीन प्रकारसे बतलाई गई है
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वीरनिर्वाणके पश्चात्- ४६१ वर्ष
वीरनिर्वाणके समय पालक राजाका
अभिषेक शक वंश
पालक
६० वर्ष गुप्त वंश
विजय वंश चतुर्मुख
मुरुंड वंश १००० बर्ष
पुष्यमित्र वसुमित्र-अग्निमित्र गन्धर्व
१००, वीरनिर्वाणसे आचारांगधरों तककी
नरवाहन आचार्यपरंपरा ६८३ ,,
भृत्यांध्र
२४२॥ तत्पश्चात् व्यतीत काल २७५ ,,
गुप्तवंश
२३१ ॥ चतुर्मुख कल्की ४२,
चतुर्मुख करकी
१००० वर्ष प्रसंगवश यह भी कहा है कि २१००० वर्ष प्रमाण इस दुःषम कामें १०००-१००० वर्षके पश्चात् एक एक करकी और ५००-५०० वर्षमें एक एक उपकल्की जन्म लेता है। ये कल्की लोभवश साधुओंके आहारमेंसे कर (टैक्स) के रूपमें अग्रिम प्रास मांगते हैं । साधु प्रास देकर अन्तराय मान निराहार वापिस चले जाते हैं। उस समय मो. किसी एकको अवधिज्ञान प्रगट हो जाता है । अन्तिम कल्कीके समय वीरांगज मुनि, सर्व
आर्यिका, अग्निदत्त श्रावक और पंगुश्री श्राविका रहेगी । कल्की द्वारा आहारमसे अमिन ग्रास मांगनेपर उसे देकर मुनि अन्तराय मान वापिस चल जाते हैं । पश्चात् अवधिज्ञान प्राप्त होनेपर वे अग्मिल ( अग्निदत्त ), पंगुश्री और सर्वश्रीको बुलाकर प्रसन्नतापूर्वक उपदेश देते हैं
१२॥
१००० वर्ष
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