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________________ (२९) त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना प्रथम तीर्थकरका जब अवतार हुआ तब सुषम-दुःषमा कालमें ८४ लाख पूर्व ३ वर्ष और ८३मास शेष थे। यहां प्रसंग वश २० तीर्थकका वर्णन ५२२ से १२८० गाथाओंमें बहुत विस्तारसे किया गया है ( देखिये यंत्र नं ७)। इसी बीच प्रकरणानुसार ३१ अन्तराधिकारों द्वारा (गा. ७१० से ८९१) समवसरणकी भी विस्तृत प्ररूपणा की गई है। यहां ही गणधरोंका प्रसंग आनेपर बुद्धि, विक्रिया, क्रिया, तप, बल, औषधि, रस और क्षेत्र, इन ऋद्धियोंका भी महत्वपूर्ण विवेचन है (गा. ९६७-१०९१)। चक्रवर्तिप्ररूपणामें (गा. १२८१-१९१०) भरतादिक चक्रवर्तियोंका उत्सेध, आयु, कुमारकाल, मण्डलीककाल, दिग्विजय, राज्य और संयमकालका वर्णन है (देखिये यंत्र नं. ९)। . बलदेव, नारायण, प्रतिनारायण, रुद्र, नारद और कामदेवोंकी भी यहां संक्षिप्त प्ररूपणा की गई है ( देखिये यंत्र नं. ८, १०-१२) और इन सबोंको भव्य एवं मुक्तिगामी बतलाया गया है ( गा. १४११-१४७३ )। भगवान् महावीरके मुक्त होनेके पश्चात् ३ वर्ष ८३ मासके वीतनेपर दुःषम कालका प्रारम्भ हो जाता है। वीर भगवान्के सिद्ध होनेपर गौतम स्वामीको, उनके सिद्ध होनेपर सुधर्म स्वामीको, तथा सुधर्म स्वामीके भी सिद्ध होनेपर जम्बू स्वामीको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई। यहां तक अनुबद्ध केवलियोंका अस्तित्व रहा। यहां विशेष यह भी बतलाया है कि मुक्तिगामियोंमें अन्तिम श्रीधर थे जो कुण्डलगिरिसे मुक्त हुए । चारण ऋषियोंमें अन्तिम सुपार्श्वचन्द्र, प्रज्ञाश्रमणोंमें अन्तिम वज्रयश, अवधिज्ञानियों में अन्तिम श्रीनामक, तथा मुकुटधरोंमें जिन-दीक्षाधारक अन्तिम चन्द्रगुप्त हुए । आगे जाकर वर्धमान भगवान्के तीर्थमें ५ श्रुतकेवली, ११दशपूर्वधारी, ५ ग्यारह अंगोंके धारक और : आचारांगधारी, इनकी परम्परा बतलायी गई है। उक्त केवलिश्रुतकेवली आदिकोंका समस्त काल छह सौ तेरासी (६२+१००+१८३+२२०+११८% ६८३ ) वर्ष है । तत्पश्चात् २०३१७ वर्ष व्यतीत होनेपर, अर्थात् पंचम कालके अन्तमें, धर्मकी प्रवृत्ति नष्ट हो जायगी, ऐसा कहा गया है । ___इस कालमें भी चातुर्वर्ण धर्मसंघ तो रहेगा, किन्तु कषायोंकी तीव्रता उत्तरोत्तर बढ़ती जायगी । वीरनिर्वाणके ४६१ वर्ष पश्चात् शक राजा उत्पन्न हुवा । इसमें मतान्तरसे ९७८५ वर्ष ५ मास, १४७९३ वर्ष, तथा ६०५ वर्ष ५ मास पश्चात् भी शक राजाकी उत्पत्ति कही गई है । इनमेंसे अन्तिम मत ग्रंथकारको अभीष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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