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________________ - ९.१० ] वो महाधियारो [ ८७३ पणकादिजुदपंचसया ओगाहणया धणूणि' उक्कस्से | आउट्ठद्दत्थमेत्ता सिद्धाण जहणठाणम्मि ॥ ६ 9 तणुवादब इलसंखं पणसयरूवेहि ताडिदूण तदो । पण्णरसदेहि भजिदे उक्करसोगाहणं होदि ॥ ७ ५२५ | ५२५ | ६ तणुवाद बहलसंखं पणसयरूहि ताडिदूण तदो । णवलक्खेहिं भजिदे जहण्णमोगाहणं होदि ॥ ८ १५७५ । ५०० ९००००० १५७५ । ५०० १५०० लोयविणिच्छयगंथे लोयविभागम्मि सम्वसिद्धाणं । ओगाहणपरिमाणं भणिदं किंचूणचरिमदेहसमो ॥ ९ पाठान्तरम् । दीदत्तं बादल्लं चरिमभवे जस्स जारिलं ठाणं । तत्तो विभागहीणं ओगाहण सम्वसिद्धाणं ॥ १० RT इन सिद्धोंकी उत्कृष्ट अवगाहना पांचके वर्गसे युक्त पांच सौ अर्थात् पांच सौ पच्चीस धनुष और जघन्य अवगाहना साढ़े तीन हाथ प्रमाण है ॥ ६ ॥ उत्कृष्ट ५२५ ध., जघन्य हाथ । तनुत्रातके बाहुल्यकी संख्या को पांच सौ रूपोंसे गुणा करके पन्द्रह सौका भाग देने पर जो लब्ध आवे उतना उत्कृष्ट अवगाहनाका प्रमाण होता है ॥ ७ ॥ पाठान्तर । त. वा. १५७५ x ५०० ÷ १५०० = ५२५ धनुष । तनुवात के बाहल्यकी संख्याको पांच सौ रूपोंसे गुणा करके नौ लाखका भाग देने पर जघन्य अवगाहनाका प्रमाण होता है ॥ ८ ॥ १५७५ × ५०० : ९००००० = धनुष = ३ ३ हाथ । लोकविनिश्चय ग्रन्थ में लोकविभाग में सब सिद्धों की अवगाहनाका प्रमाण कुछ कम चरम शरीर के समान कहा है ॥ ९ ॥ पाठान्तर । TP. 110 अन्तिम भवमें जिसका जैसा आकार, दीर्घता और बाहल्य हो उससे तृतीय भागसे कम सत्र सिद्धों की अवगाहना होती है ॥ १० ॥ Jain Education International १ द ब दणाणि २ द ब १५०० | १५७५ | ५०० | १ | ५२५ ।. ३ द व ९००००० । १५७५ । ५०० ।। १।७।. ४ द ब मजिदं २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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