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________________ [णयमो महाधियारो] उम्मग्गसंठियाणं भव्वाणं मोक्खमग्गदेसयरं । पणमिय संतिजिणेसं वोच्छामो सिद्धलोयपत्तिं ॥१ सिद्धाण णिवासखिदी संखा ओगाहणाणि सोक्खाई । सिद्धत्तहेदुभाभो सिद्धजगे' पंच अहियारा ॥ २ भट्ठमखिदीए उवरिं पण्णासभहियसत्तयसहस्सा । दंडाणि गंतूणं सिद्धाणं होदि आवासो ॥३ पणदोछप्पणइगिभडणहचउसगचउखचदुरअडकमसो । अहिदा जोयणया सिद्धाण णिवासखिदिमाण ॥ ८४०४७४०८१५६२५ । ।णिवासखेतं गदं। तीसमयाण संखं अडसमयभहियमासछक्कहिदा । अबहीणछस्सयाहदपरिमाणजुदा हुवंति ते सिद्धा॥५ अ । ५९२।। मा ६ स ८ । संखा गदा। उन्मार्गमें स्थित भव्योंको मोक्षमार्गका उपदेश करनेवाले शान्ति जिनेन्द्रको नमस्कार करके सिद्धलोकप्रज्ञप्तिको कहते हैं ॥ १ ॥ . सिद्धोंकी निवासभूमि, संख्या, अवगाहना, सौख्य और सिद्धत्वके हेतुभूत भाव, ये सिद्धलोकमें पांच अधिकार हैं ॥ २ ॥ आठवीं पृथिवीके ऊपर सात हजार पचास धनुष जाकर सिद्धोका आवास है ॥ ३ ॥ सिद्धोंके निवासक्षेत्रका प्रमाण अंकक्रमसे आठसे भाजित पांच, दो, छह, पांच, एक, आठ, शून्य, चार, सात, चार, शून्य, चार और आठ इतने योजन है ॥ ४ ॥ ८४.४७४०८१५६२५ । निवासक्षेत्र समाप्त हुआ । अतीत समयोंकी संख्यामें छह मास और आठ समयका भाग देकर आठ कम छह सौ अर्थात् पांच सौ बानबैसे गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उतने सिद्ध हैं ॥ ५॥ अतीत समय : ६ मास ८ स. ४ ५९२ = सब सिद्ध । संख्याका कथन समाप्त हुआ । १द ब जिणेणं. २द व जुगे. ३द व छप्पण्ण. ४ द व भडहीणछसयाबादपरिणामजुदा. ५द ब अ मा ५१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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