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- ८. ७०३ ]
अमो महाधियारो
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इकविमुक्कं णिम्मलवर मोक्खलच्छिमुहमुकुरं । पालदि य धम्मतिव्थं धम्मजिर्णिदं णमंसामि || ७०३
एवमारियपरंपरागदतिलोयपण्णत्तीए देवलोयसरूवणिरूवणपण्णत्ती' नाम अट्टमो महाहियारो सम्मत्तो ॥ ८ ॥
जो चतुर्गति रूप पंकसे रहित, निर्मल व उत्तम मोक्ष- लक्ष्मी के मुखके मुकुर ( दर्पण ) स्वरूप तथा धर्म तीर्थके प्रतिपादक हैं उन धर्म जिनेन्द्रको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ७०३ ॥ इस प्रकार आचार्यपरम्परागत त्रिलोकप्रज्ञप्ति में देवलोकस्वरूपनिरूपणप्रज्ञप्ति नामक आठवां महाधिकार समाप्त हुआ ।
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१ द ब सरूवणपण्णत्ती.
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