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८६८। तिलोयपण्णत्ती
१८. ६८५सकीसाणा पढम माहिंदसणक्कुमारया बिदियं । तदियं च बम्हलंतववासी तुरिमं सहस्सयारगदा ॥ माणदपाणदआरणअच्चुदवासी य पंचमं पुढविं । छट्ठी पुढवी हेट्ठा णवविधगेवजगा देवा ॥ ६८६ सम्वं च लोयणालिं अणुहिसाणुत्तरेसु पस्संति । सक्खेत्ते य सकम्मे रूवमगदमणंतभागो य ॥ ६८७ कप्पामराण' णियणियोहीदवं सविस्ससोवचयं । ठविदूण य हरिदव्वं तत्तो धुवभागहारणं ।। ६८८ णियणियखोणियदेसं सलागसंखा समप्पदे जाव' । अंतिल्लखंधमेत्तं एदाणं ओहिदम्वं खु ॥ ६८९ होति असंखेजाओ सोहम्मदुगस्स वासकोडीओ । पल्लस्सासंखजो भागो सेसाण जहजोगं ॥ ६९०
।एवं ओहिणाणं गदं । सोहम्मीसाणदुगे विंदंगुलतदियमूलहदसेढी । बिदिय जुगलम्मि सेढी एकरसमेवग्गमूलहिदा ॥ ६९॥
सौधर्म और ईशान कल्पवासी देव प्रथम पृथिवी तक, सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पवासी द्वितीय पृथिवी तक, ब्रह्म और लांतव कल्पवासी तृतीय पृथिवी तक, सहस्रार कल्पवासी चतुर्थ पृथिवी तक; आनत, प्राणत, आरण एवं अच्युत कल्पवासी पांचवीं पृथिवी तक, नौ प्रकारके ग्रैवेयवासी देव छठी पृथिवीके नीचे तक, तथा अनुदिश व अनुत्तरवासी देव सब ही लोकनालीको देखते हैं । अपने कर्मद्रव्यमें अनन्तका भाग देकर अपने क्षेत्रमें से एक एक कम करना चाहिये । [इस प्रकार अन्तमें जो स्कन्ध रहें वह विवक्षित देवके अवधिज्ञानका विषयभून द्रव्य होता है। ] कल्पवासी देवोंके विस्रसोपचय सहित [रहित ] अपने अवधिज्ञानावरण द्रव्यको रखकर जब तक अपने अपने क्षेत्रप्रदेशकी शलाकायें समाप्त न हो जावें तब तक ध्रुवहारका भाग देना चाहिये । उक्त प्रकारसे भाग देनेपर अन्तमें जो स्कन्ध रहे उतने मात्र इनके अवधिज्ञानके विषयभूत द्रव्यका प्रमाण समझना चाहिये ॥ ६८५-६८९ ॥
कालकी अपेक्षा सौधर्मयुगलके देवोंका अवधिविषय असंख्यात वर्ष करोड़ और शेष देवोंका यथायोग्य पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ॥ ६९० ॥
. इस प्रकार अवधिज्ञानका कथन समाप्त हुआ । सौधर्म-ईशानयुगलमें देवोंकी संख्या घनांगुलके तृतीय वर्गमूलसे गुणित श्रेणी प्रमाण और द्वितीय युगलमें अपने ग्यारहवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणी प्रमाण है ॥ ६९१ ॥
सौ. युगल – श्रे. x घ. अं. का ३ वर्गमूल । सनत्कुमारयुगल श्रे. श्रे. ११ वर्गमूल ।
१ द ब संखेत संकम्मेः २ द ब कप्पामरा य. ३ व जीवा. ४ द ब विदियजुगलं. ५दब एक्करसग.
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