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________________ -८. ६९६] अट्ठमो महाधियारो बम्हम्मि होदि सेढी सेढीणववग्गमूलअवहरिदा। लंतवकप्पे सेढी सेढीसगवग्गमूल हिदा ॥ ६९२ महसुक्कम्मि य सेढी सेढीपणवग्गमूलभजिदव्वा । सेढी सहस्सयारे सेढीचउवग्गमूलहिदा ॥ ६९३ ५।४। अवसेसकप्पजुगले पल्लासंखेजभागमेक्केके । देवाणं संखादा संखेजगुणा हुवंति देवीओ ॥ ६९४ हेटिममज्झिमउवरिमगेवजेसं अणुद्दिसादिद्गे । पल्लासंखेजसो सुराण संखाए जहाजोगं ॥ ६९५ णवरि विसेसो सम्वट्ठसिद्धिणामम्मि होदि संखेजा । देवाणं परिसंखा णिहिट्ठा वीयरागेहिं ॥ ६९६ । संखा गदा। ब्रह्म कल्पमें देवोंकी संख्या श्रेणीके नौवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणी प्रमाण और लांतव कल्पमें श्रेणीके सातवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणी प्रमाण है ॥ ६९२ ॥ ब्रह्म - श्रे’ श्रे. ९ व. मू. । लांतत्र – श्रे. * श्रे. ७ वर्गमूल । महाशुक्र कल्पमें देवोंकी संख्या श्रेणीके पांचवें वर्गमूलसे भाजित श्रेणी प्रमाण और सहस्रार कल्पमें श्रेणीके चतुर्थ वर्गमूलसे भाजित श्रेणी प्रमाण है ॥ ६९.३ ।। महाशुक्र - श्रे. श्रे. ५ व. भू. । सहस्रार - श्रे. श्रे. ४ व. मू. शेष दो कल्पयुगलोंमेंसे एक एकमें देवोंका प्रमाण पल्यके असंख्यातवें भाग मात्र है। देवोंकी संख्यासे देवियां संख्यातगुणी हैं ॥ ६९४ ॥ अधस्तन अवेय, मध्य प्रैवेय, उपरिम अवेय और अनुदिशद्विक ( अनुदिश और अनुत्तर) में देवोंकी संख्या यथायोग्य पल्य के असंख्यात भाग प्रमाण है ॥ ६९५ ॥ _ विशेष यह है कि सर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रकमें संख्यात देव हैं। इस प्रकार बीतराग भगवान्ने देवोंकी संख्या निर्दिष्ट की है ॥ ६९६ ॥ संख्याका कथन समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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