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अमो महाधियारो
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- चामीयस्रयणमए. सुगंधधूवादिवासिदे विमले । देवा देवीहि समं रमंति दिव्वम्मि पासादे ॥ ५९३ संते ओहीगाणे अष्णोष्णुप्पण्णपेममूढमणा । कामंधा गदकालं देवा देवीओो ण निर्दति ॥ ५९४ गभावया पहुदिसु उत्तरदेहा सुराण गच्छति । जम्मणठाणेसु सुइं मूलसरीराणि चेति ॥ ५९५ वरि बिसेसो एसो सोहम्मीसाणजाददेवीणं । वच्वंति मूलदेहा नियणियकप्पामराण पासम्मि ॥ ५९६ | सुखपरूवणा सम्मत्ता |
अरुणवर दीवबाहिरजगदीदो जिणवरुत्तसंखाणि । गंतून जोयणाणि भरुणसमुद्दस्स पणिधीए ॥ ४९७ एक्कदुगसत्तएक्के अंककमे जोयणाणि उवरि पहं । गंतूणं वलएणं चेद्वेदि तमो तमक्का ॥ ५९८
१७२१ ।
आदिमच कप्पे देसवियप्पाणि तेसु काढूणं । उचरिंगदबम्हकप्पप्पढमिंदय पणिधितल पत्तो ॥ ५९९ मूलम्मि रुंदपरिही हुवेदि संखेज्जजोयणा तस्स । मज्झम्मि भसंखेज्जा उचरिं तत्तो यसंखेज्जो ॥ ६००
उक्त देव सुवर्ण एवं रत्नोंसे निर्मित और सुगंधित धूपादिसे सुवासित विमल दिव्य प्रासादमें देवियोंके साथ रमण करते हैं ॥ ५९३ ॥
अवधिज्ञानके होनेपर परस्परमें उत्पन्न हुए प्रेममें मूढमन होनेसे वे देव और देवियां कामान्ध होकर बीते हुए कालको नहीं जानते हैं ॥ ५९४ ॥
गर्भ और जन्मादि कल्याणकों में देवोंके उत्तर शरीर जाते हैं। उनके मूल शरीर सुखपूर्वक जन्मस्थान में स्थित रहते हैं ।। ५९५ ।।
विशेष यह है कि सौधर्म और ईशान कल्पमें उत्पन्न हुई देवियों के मूल शरीर अपने अपने कल्पके देवोंके पास जाते हैं । ५९६॥
सुखप्ररूपणा समाप्त हुई ।
अरुणवर द्वीपकी बाह्य जगतीसे जिनेन्द्रोक्त संख्या प्रमाण योजन जाकर : अरुण समुद्र के प्रणिधि - भाग में अंकक्रमसे एक, दो, सात और एक अर्थात् सत्तरह सौ इक्कीस योजन प्रमाण ऊपर आकाशमें जाकर वलय रूपसे तमस्काय स्थित है ।। ५९७-५९८ ।। १७२१ ।
यह तमस्काय आदिके चार कल्पों में देशविकल्पोंको अर्थात् कहीं कहीं अन्धकार उत्पन्न करके उपरिगत ब्रह्म कल्प सम्बन्धी प्रथम इन्द्रकके प्रणिधितल भागको प्राप्त हुआ है (?) ॥ ५९९ ॥
उसकी विस्तारपरिधि मूलमें संख्यात योजन, मध्य में असंख्यात योजन, और इससे ऊपर असंख्यात योजन है ॥ ६०० ॥
१. द ब मूल. २ द ब रंभावयार. . ३ द ब आम्बंधण परिणा सामंत कब्ज मुखपरूवणा सम्मा. ४ द ब तमंकादि ५ द ब कप्पं पढमिंदा य पर्णाधितल पंधे.
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