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________________ ८१६) तिलायपण्णत्तो [८. ३२१णिरुवमलावण्णाभो वरविविहविभूसणाओ पत्तेक्कं । आउट्ठकोडिमेत्ता वल्लहिया लोयपालाणं ॥ ३२॥ ३५००००००। सामाणियदेवीभो सव्वदिगिदाण होति पत्तेक्कं । णियणियदिगिददेवीसमाणसंखाओ सव्वाभो ॥ ३२२ सम्वेसुं इंदेसुं तणुरक्खसुगण होति देवीभो । पुह छस्सयमेत्तागि णिरुवमलावण्णरूवाओ ।। ३२३ मादिमदोजुगलेसुं बम्हादिसु चउसु आणद चउक्के । पुह पुह सयिंदागं अब्भंतरपरिसदेवीभो ॥ ३२४ पंचसयचउसयाणि तिसया दोसयाणि एक्कसयं । पण्णासं पणुवीसं कमेण एदाण णादव्वं ॥ १२५ ५०० । ४०० । ३००। २००।१००। ५० | २५ । छप्पंचच उसयाणिं तिगदुगएक्कसयाणि पण्णासा । पुवोदिदठाणेसं मज्झिमपरिसाए देव ओ॥ ३२३ ६००। ५०० । ४०० । ३०० । २०० । १०० । ५० । सत्तच्छपंचवउतियदुगएक्कसयागि पुवठाणे तुं । सविदाणं होति हु बाहिरपरिसाए देवीभो ॥ ३२७ __७००। ६०० | ५०० । ४०० । ३०० । २०० । १००। प्रत्येक लोकपालके अनुपम लावण्यसे युक्त और विविध प्रकारके भूषणोंवाली ऐसी साढ़े तीन करोड़ वल्लभायें होती हैं ।। ३२१ ॥ ३५०००००० । सब लोकपालों से प्रत्येकके सामानिक देवोंकी सब देवियां अपने अपने लोकपालोंकी देवियोंके समान संख्यावाली हैं ॥ ३२२ ॥ सब इन्द्रोंमें तनुरक्षक देवोंकी अनुपम लावण्यरूपवाली देवियां पृथक् पृथक् छह सौ मात्र होती हैं ॥ ३२३ ॥ __ आदिके दो युगल, ब्रम्हादिक चार युगल और आनतादिक चारमें सब इन्द्रोंके अभ्यन्तर पारिषद देवियां क्रमशः पृथक् पृथक् पांच सौ, चार सौ, तीन सौ, दो सौ, एक सौ, पचास और पच्चीस जानना चाहिये ॥ ३२४-३२५ ॥ सौ. ई. ५००, स. मा. ४००, ब्र. ३००, ला. २००, म. १००, सह. ५०, आनतादि चार २५ । पूर्वोक्त स्थानोंमें मध्यम पारिषद देवियां क्रमसे छह सौ, पांच सौ, चार सौ, तीन सौ, दो सौ, एक सौ और पचास हैं ॥ ३२६ ॥ सौ. ई. ६००, स. मा. ५००, ब्र. ४८०, ला. ३००, म. २००, सह. १.०, आनतादिक चार ५०। पूर्वोक्त स्थानोंमें सब इन्द्रोंके बाह्य पारिषद देवियां क्रमसे सात सौ, छह सौ, पांच सौ, चार सौ, तीन सौ, दो सौ और एक सौ हैं ॥ ३२७ ॥ सौ. ई. ७००, स. मा. ६००, ब. ५००, ला. ४००, म. ३००, सह. २००, आनतादि चार १००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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