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________________ -८. ३३५] अट्ठमो महाधियारो [८१७ • सत्ताणीयपहूणं पुह पुह देवीओ छस्सया होति । दोणि सया पत्तेक्कं देवीओ आणीयदेवाणं ॥ ३२८ ६०० । २००। जाओ पइण्णयाण अभियोगसुराण किब्बिसाणं च । देवीओ ताण संखा उवएसो संपइ पणटो ॥ ३२९ तणुरक्खप्पहुदीणं पुह पुह एक्केक्कजेटदेवीओ । एक्केका वल्लहिया विविहालंकारकंतिल्ला ॥ ३३. सोहम्मीसाणेसुं उपजते हु सव्वदेवीओ । उवरिमकप्पे ताणं उप्पत्ती णस्थि कइया वि ॥ ३३१ छल्लक्खागि विमाणा सोहम्मे देक्विणिंदसवाणं । ईसाणे चउलक्खा उत्तरइंदाग य विमाणा ॥ ३३२ ६०००००। ४०००००। तेसुं उप्पण्णाओ देवीओ भिण्णओहिणाणेहिं । णादूणं णियकप्पे ऐति हु देवा सरागमणा ॥ ३३३ सोहम्मम्मि विमाणा सेसा छब्बीसलक्खसंखा जे । तेसुं उपपजंते देवा देवीहि सम्मिस्सा ॥ ३३४ ईसागम्मि विमाणा सेसा चउवीसलक्खसंखा जे । तेसु उप्पाजते देवीओ देवमिस्लाओ॥ ३३५ ___ सात अनीकोंके प्रभुओंके पृथक् छह सौ और प्रत्येक अनीक देवके दो सौ देवियां होती हैं ॥ ३२८ ॥ महत्तर ६००, अनीक २०० । प्रकीर्णक, आभियोग्य सुर और किल्लिषिक देवों के जो देवियां हैं उनकी संख्याका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ॥ ३२९॥ ___ तनुरक्षक आदि देवोंके पृथक् पृथक् विविध अलंकारोंसे शोभायमान एक एक ज्येष्ठ देवी और एक एक वल्लभा होती है ॥ ३३० ॥ सब देवियां सौधर्म और ईशान कल्पोंमें ही उत्पन्न होती हैं, इससे उपरिम कल्पोंमें उनकी उत्पत्ति कदापि नहीं होती ॥ ३३१ ॥ सब दक्षिण इन्द्रोंके सौधर्म कल्पमें छह लाख विमान और उत्तर इन्द्रोंके ईशान कल्पमें चार लाख विमान हैं ॥ ३३२ ॥ सौ. ६०००००, ई. ४०००००। ___ उन कल्पोंमें उत्पन्न हुई देवियोंको भिन्न अवधिज्ञानसे जानकर सराग मनवाले देव अपने कल्पमें ले जाते हैं ॥ ३३३ ॥ सौधर्म कल्पमें शेष जो छब्बीस लाख विमान हैं उनमें देवियोंसे सहित देव उत्पन्न होते हैं ।। ३३४ ॥ ईशान कल्पमें जो शेष चौबीस लाख विमान हैं उनमें देवोंसे युक्त देवियां उत्पन्न होती हैं ॥ ३३५॥ TP. 103 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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