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-८. ३२०] अट्ठमो महाधियारो
[८१५ परिवारवल्लभाभी सक्कामोदुगस्स जेट्टदेवीओ। णियसमविकुब्बगाओ पत्तेक्कं सोलस सहस्सा ॥ ३१५
तत्तो दुगुणं ताओ गियणियतणुविकुठवणकराओ। आगदईदचउक्कं जाव कमेणं पवत्तव्यो ॥ ३.५
३२००० । ६४०००। १२८००० । २५६००० । ५१२००० । १०२४००० । विणयसिरिकणयमालापउमागंदासुसी मजिणदत्ता । एक्केक्कदक्खिागंदे एकेक्का पाणवल्लहिया ॥ एक्क्क उत्तीरंदे एक्केक्का होदि हेममाला य । णीलुप्पलविस्सुदया गंदावइलक्खणाओ जिणदासी॥ सयलिंदवल्लभाणं चत्तारि महत्तरीओ पत्तेक्कं । कामा कामिशिआओ पंकयांधा यलंबुगामा य ॥३१॥ पडिइंदादितियस्स य णियणिय ईदेहिं सरिसदेवीभो । संखाए णामेहिं विकिरियारिद्धि चत्तारि ॥ ३१९ तप्परिवारा कमसो चउएक्कसहस्सयागिं पंचसय जसयाणि तबलतेसहिबत्तीसं ॥ ३२०
४०००। १००० ५०० । २२० । १२५। ६३ । ३२ ।
सौधर्म और ईशान इन्द्रकी परिवारवल्लभाओं और ज्येष्ठ देवियोंमें प्रत्येक अपने समान सोलह हजार प्रमाण विक्रिया करनेमें समर्थ हैं ॥ ३१४ ॥ १६०००।
इसके आगे आनतादि चार इन्द्रों तक वे ज्येष्ट देवियां क्रमश: इससे दूने प्रमाण अपने अपने शरीरको विक्रिया करनेवाली हैं, ऐसा क्रमसे कहना चाहिए ॥ ३१५ ॥
स. मा. ३२०००, ब्र. ६४०००, लां. १२८०००, म. २५६०००, सह.५१२०००, आनतादि १०२४००० ।
एक एक दक्षिण इन्द्रशे विनयश्री, कनकमाला, पद्मा, नंदा, सुसीमा और जिनदत्ता, इस प्रकार एक एक प्राणवल्लभा होती है ॥ ३१६ ॥
हेममाला, नीलोत्पला, विश्रुता, नन्दा, वैलक्षणा और जिनदासी, इस प्रकार एक एक उत्तर इन्द्र के एक एक प्राणवल्लभा होती है ॥ ३१७ ॥
सब इन्द्रोंकी वल्लभाओंमेंसे प्रत्येक कामा, कामिनिका, पंकजगंधा और अलंबु ( अलंबूषा ) नामक चार महत्तरी ( गणिका महत्तरी ) होती हैं ॥ ३१८ ॥
प्रतीन्द्रादिक तीनकी देवियां संख्या, नाम, विक्रिया और ऋद्धि, इन चारमें अपने अपने इन्द्रोंके सदृश हैं ॥ ३१९ ॥
उनके परिवारका प्रमाण कमसे चार हजार, एक हजार, पांच सौ, अढ़ाई सौ, इसका आधा अर्थात् एक सौ पच्चीस, तिरेसठ और बत्तीस है ॥ ३२० ॥
४०००, २०००, १०००, ५००, २५०, १२५, ६३, ३२ ।
१दबणियसमय. २दब पडिइंदात्तिधियस्स य.
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