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________________ - ८. २४३ ] अट्टम महाधिया [ ८०५ इगिकोडी छल्लक्खा अट्ठासट्टीसहस्सया वसदा । सोहम्मिदे होंति हु तुरयादी' तेत्तिया वि पत्तेक्कं ॥ १०६६८००० पिंड | ७४६७६००० । एक्का कोडी एकं लक्खं सही सहस्स वसहाणिं । ईसाणिंदे होंति हु तुरयादी तेत्तिया विपत्तेकं ॥ २३९ १०१६०००० | पिंड ७११२०००० | लक्खाणि एकणउदी चउदालसहस्स्याणि वसहाणि । होंति हु तदिए इंदे तुरयादी वेतिया त्रिपत्तेकं ॥ ९१४४००० | पिंड ६४००८००० | भट्टासीदलक्खा उदिसहस्माणि होति सद्दाणिं । माहिंदिंदे तेत्तियमेत्ता तुरयादिणो वि पत्ते ॥ २४१ ८८९०००० | पिंड ६२२३०००० | छातरिलक्खाणि वीससहस्साणि होति वसहाणं । बहिंडे पत्तेक्कं तुरयप्पहुदी वितमेतं || २४२ ७६२०००० | पिंड ५९३३४०००० | सट्टीलक्खाणि पण्णाससहस्सयाणि वसहाणि । लंतवइंदे होति हु तुरयादी तेत्तिया वि पत्तेक्कं ॥ २४३ ६३५०००० | पिंड ४४४५०००० । सौधर्म इन्द्रके एक करोड़ छह लाख अड़सठ हजार वृषभ होते हैं और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने मात्र ही होते हैं || २३८ ॥ वृषभ १०६६८०००; १०६६८००० × ७ = ७४६७६००० प्र. क. सप्तानीक | ईशान इन्द्रके एक करोड़ एक लाख साठ हजार वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने मात्र ही होते हैं ॥ २३९ ॥ १०१६०००० × ७ = ७११२०००० सप्तानीक । तृतीय इन्द्रके इक्यानबे लाख चवालीस हजार वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने मात्र ही होते हैं ।। २४० ॥ ९१४४००० X ७ = ६४००८००० सप्तानीक । माहेन्द्र इन्द्रके अठासी लाख नब्बे हजार वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने मात्र ही होते हैं । २४१ ॥ ८८९०००० × ७ = ६२२३०००० सप्तानीक | ब्रह्मेन्द्र के छयत्तर लाख बीस हजार वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने मात्र ही होते हैं ॥ २४२ ॥ ७६२०००० × ७ = ५३३४०००० सप्तानीक | लांतब इन्द्रके तिरेसठ लाख पचास हजार वृषभ और तुरगादिकमें से प्रत्येक भी इतने मात्र ही होते हैं ॥ २४३ ॥ ६३५०००० × ७ = ४४४५०००० सप्तानीक । Jain Education International १ ब तुरयादिय. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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