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________________ ८.४१ तिलोयपण्णत्ती [८.२३२. मजिसमपरिसाए सुरा चौइसबारसदसट्टछचउदुगा । होति सहस्सा कमसा सोहम्मिदादिएसु सत्तेसु ॥ १४०००। १२००० । १००००। ८०००। ६००० 1 ४००० । २००० । एक्कसहस्सपमाणं सहस्सयारिंदयम्मि पंचसया । उवरिमचउइंदेसुं पत्तेक्कं ममिमा परिसा ॥ २३३ १०००। ५०० । ५०० | ५००। ५..।। लोलसचोहसबारसदसट्टछश्चदुदुगेक्क य सहस्सा । बाहिरपरिसा कमलो समिदा चंदा य जउणामा ॥ २३४ । बाहिरपरिसा सम्मत्ता। वसहतुरंगमरहगजपदातिगंधवणयाणीया । एवं सत्ताणीया एक्केक्क हुवंति इंदाणं ॥ २३५ एदे सत्ताणीया पत्तेक्कं सत्तसत्तकक्खजुदा । तेसु पढमाणीया णियणियसामाणियाण समा' ॥ २३६ तत्तो दुगुणं दुगुणं कादच जाव सत्तमाणीयं । परिमाणजाणणटुं ताणं संखं परूवेमो ॥ २३० .................-- सौधर्मादिक सात इन्द्रोंमेंसे प्रत्येककी मध्यम परिषद् क्रमसे चौदह, बारह, दश, आय, छह, चार और दो हजार देव होते हैं ॥ २३२ ।। सौ. १४०००, ई. १२०००, सन. १००००, मा. ८०००, ब्र. ६०००, लां. ४०००, म. २०००। सहस्रार इन्द्रकी मध्यम परिषद्में एक हजार प्रमाण और उपरितन चार इन्द्रोंमेंसे प्रत्येककी मध्यम परिषदें पांच सौ देव होते हैं || २३३ ॥ सह. १०००, आन. ५००, प्रा. ५००, आ. ५००, अ. ५०० । उपर्युक्त इन्द्रोंके बाह्य पारिषद देव क्रमसे सोलह, चौदह, बारह, दशा, आठ, छै, चार, दो और एक हजार प्रमाण होते हैं । इन तीनों परिपदोंका नाम क्रमसे समित , चन्द्रा और जतु है ॥ २३४ ॥ ___ बाह्य परिषद्का कथन समाप्त हुआ। वृषभ, तुरंगम, रथ, गज, पदाति, गंधर्व और नर्तक अनीक, इस प्रकार एक एक इन्द्रके सात सेनायें होती हैं ॥ २३५ ॥ इन सात सेनाओं से प्रत्येक सात सात कक्षाओंसे युक्त होती है। उनमेंसे प्रथम अनीकका प्रमाण अपने अपने सामानिकोंके बराबर होता है ॥ २३६ ॥ इसके आगे सप्तम अनीक पर्यन्त उससे दूना दूना करना चाहिये । इस प्रमाणको जाननेके लिये उनकी संख्या कहते हैं ॥ २३७ ॥ wi..................... १द बदाय जुयणाओ. २द सामाणियाणि समता, बसामाणियाणि सम्मत्ता. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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