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________________ -८. १९१] अट्ठमा महाधियारो [७९७ कप्पेसुं संखेज्जो विक्खंभो रासिपंचमविभागो। णियणियसंखेज्जूणा णियणियरासी यसंखज्जो ॥ १८॥ संखेज्जो विक्खंभो चालीससहस्सयाणि छलक्खा । सोहम्मे ईसागे चालसहस्सूगछल्लक्खा ॥ १८७ ६४००००। ५६०००० । चालीससहस्साणि दोलक्खाणि सणक्कुमारम्मि । सद्विसहस्सन्भहियं माहिदे एक्कलक्खाणि ॥ १८८ २४००००। १६००००। बम्हे सीदिसहस्सा लंतवकन्याम्म दससहस्साणिं । अट्ठसहस्सा बारससयाणि महसुक्कर सहस्सारे ।। १८९ ८०००० । १००००। ८००० । १२०० । आणदाणदारणअच्चुदणामेसु च उसु कप्पेसुं । संखेज्जरुंदसंखा चालब्भहियं सयं होदि ॥ १९० तियअट्ठारससत्तरसएक्कएक्काणि तस्स परिमाणं । इंटिममज्झिमउवरिमगेवाजेसु अणुदिसादिजुगे॥ ३।१८।१७।१। । कल्पोंमें राशिके पांचवें भाग प्रमाण विमान संख्यात योजन विस्तारवाले हैं और अपने अपने संख्यात योजन विस्तारवाले विमानोंकी राशिसे कम अपनी अपनी राशिप्रमाण असंख्यात योजन विस्तारवाले हैं ॥ १८६ ॥ सौधर्म कल्पमें संख्यात योजन विस्तारवाले विमान छह लाख चालीस हजार और ईशान कल्पमें चालीस हजार कम छह लाख हैं ।। १८७ ।। सौ. ६४००००, ई. ५६००००। ___ सनत्कुमार कल्पमें संख्यात योजन विस्तारवाले दो लाख चालीस हजार और माहेन्द्र कल्पमें एक लाख साठ हजार हैं ॥ १८८ ॥ स. २४००००, मा. १६०००० ।। ब्रह्म कल्पमें अस्सी हजार, लांतव कल्पमें दश हजार, महाशुक्रमें आठ हजार, और सहस्रारमें बारह सौ संख्यात योजन विस्तारवाले विमान हैं ॥ १८९॥ ब्र. ८००००, लां. १००००, महा. ८०००, स. १२०० । आनत, प्राणत, आरण और अच्युत नामक चार कल्पोंमें संख्यात योजन विस्तारवाले विमानों की संख्या एक सौ चालीस है ॥ १९० ॥ १४० । अधस्तन, मध्यम और उपरिम प्रैवेयक तथा अनुदिशादियुगलमें संख्यात योजन विस्तारवालोंका प्रमाण क्रमसे तीन, अठारह, सत्तरह, एक और एक है ॥ १९१ ॥ अ. अ. ३, म. ]. १८, उ. ग. १७, अनुदिश. १, अनुत्तर १ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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