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________________ ७९६] तिलोयपण्णत्ती [८.१८०छष्णउदिउत्तराणि दोलक्खाणि हुवंति बम्हम्मि | बम्हुत्तरम्मि लक्खा दो वि य छण्णउदिपरिहीणा ॥ २०००९६ । १९९९०४ । पणुवीससहस्साई बादालजुदा य होति लंनवए । चउवीससहस्साणि गवसयअडवण्ण कावितु ॥ १८१ २५०४२ । २४९५८ । वीसुत्तराणि होति हु वीससहस्साणि सुक्ककप्पम्ति । ताई चिय महसुक्के' बीसूणाणि विमाणाणिं ॥ २००२० । १९९८० । उणवीसउत्तराणि तिण्णिसहस्साणि सदरकप्पम्मि | कप्पम्मि सहस्सारे उणतीससयाणि इगिसीदी ॥ १८३ ३०१९ । २९८१ । माणदपाणदकप्पे पंचसया सटिविरहिदा होति । आरणअच्चुदकप्पे दुसयाणि सटिजुत्ताणिं ॥ १८४ ४४० । २६० । अहवा आणदजुगले चत्तारि सयाणि वरविमाणाणिं । आरणअच्चुदकप्पे सयाणि तिष्णि रिचय हुवंति ॥ ४००।३००। पाठान्तरम् । ब्रह्म कल्पमें दो लाख छ्यानबै और ब्रह्मोत्तर कल्पमें छयानबै कम दो लाख विमान हैं ॥ १८० ॥ ब्रह्म. २०००९६, ब्रह्मो. १९९९०४ । लांतव कल्पमें पच्चीस हजार ब्यालीस और कापिष्ठ कल्पमें चौबीस हजार नौ सौ अट्ठावन विमान हैं ॥ १८१ ।। लां. २५०४२, का. २४९५८ ।। शुक्र कल्पमें बीस अधिक बीस हजार और महाशुक्रमें बीस कम इतने ही अर्थात् उन्नीस हजार नौ सौ अस्सी विमान हैं ॥ १८२ ॥ शु. २००२०, महा. १९९८० ।। शतार कल्पमें तीन हजार उन्नीस और सहस्रार कल्पमें उनतीस सौ इक्यासी विमान हैं ॥ १८३ ॥ श. ३०१९, स. २९८१ । आनत-प्राणत कल्पमें साठ कम पांच सौ और आरण-अच्युत कल्पमें दौ सौ साठ विमान हैं ॥ १८ ॥ आनत-प्रा. ४४०, आरण-अ. २६० । अथवा, आनतयुगलमें चार सौ और आरण-अच्युत कल्पमें तीन सौ उत्तम विमान हैं ॥ १८५ ॥ आ. युगल ४००. आ. अ. ३०० । पाठान्तर । १ द ब महसुक्कं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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