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________________ ७९८) तिलोयपण्णत्ती [८. १९२पणुवीसं लक्खाणि सहिसहस्साणि सो असंखेज्जो । सोहम्मे ईसाणे लक्खा बावीस चालयसहस्सा ॥ २५६००००। २२४००००। सविसहस्सजुदाणिं णवलक्खाणिं सणक्कुमारम्मि । चालीससहस्साणिं माहिदे छच्च लक्खाणि ॥ १९३ ९६०००० । ६४०००० । वीससहस्स तिलक्खा चालसहस्साणि बम्हलंतवए । बत्तीससहस्साणिं महसुक्के सो असंखेज्जो ॥ ३२००००। ४००००।३२००० । चत्तारि सहस्साणिं अट्ठसयाणिं तहा सहस्सारे । आणदपहुदिचउक्के पंचसया सहिसंजुत्ता ॥ १९५ ४८०० । ५६० । अट्टत्तरमेक्कसय उणणउदी सत्तरी य च उअधिया । हेटिममज्झिमउवरिमगेवज्जेसु असंखेज्जो ॥ १९६ १०८ | ८९ | ७४ । भट्ट अणुहिसणामे बहुरयणमयाणि वरविमाणाणिं । चत्तारि अणुत्तरए होंति असंखेज्जवित्थारा ॥ १९७ ८।४। असंख्यात विस्तारवाले वे विमान सौधर्म कल्पमें पच्चीस लाख साठ हजार और ईशान कल्पमें बाईस लाख चालीस हजार हैं ॥ १९२ ॥ सौ. २५६००००, ई. २२४००००। __उक्त विमान सनत्कुमार कल्पमें नौ लाख साठ हजार और माहेन्द्र कल्पमें छह लाख चालीस हजार हैं ॥ १९३ ॥ सन. ९६००००, मा. ६४००००। वे असंख्यात योजन विस्तारवाले विमान ब्रह्म कल्पमें तीन लाख बीस हजार, लातत्र कल्पमें चालीस हजार, और महाशुक्रमें बत्तीस हजार है ॥ १९४ ।। व्र. ३२००००, लां. ४००००, महा. ३२००० । उक्त विमान सहस्रार कल्पमें चार हजार आठ सौ तथा आनतादि चार कल्पोंमें पांच सौ साठ हैं ॥ १९५ ॥ सह. ४८००, आनतादि चारमें ५६० । असंख्यात योजन विस्तारवाले विमान अधस्तन, मध्यम और उपरिम अवेयमें क्रमसे एक सौ आठ, नवासी और चौहत्तर हैं ॥ १९६ ॥ अ. ]. १०८, म. ]. ८९, उ. ग्रै. ७४ । अनुदिश नामक पटलमें आठ और अनुत्तरोंमें चार असंख्यात विस्तारवाले बहुत रत्नमय उत्तम विमान हैं ॥ १९७ ॥ अनुदिश ८, अनुत्तर ४ । १दब महसक्केसु सो असंखेज्जा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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