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________________ तिलोयपण्णत्ती आहारो उस्सासो उच्छेहो ओहिणाणसत्तीओ। जीवाणं उप्पत्तीमरणाई एकसमयम्मि ॥ १६ भाऊबंधणभावं इंसणगहणस्स कारगं विविहं । गुणठाणादिपवण्णण भावणलोए म्व वत्तम् ॥ ६१. णारे य जोइसियाणं उच्छेहो सत्तदंडपरिमाणं । ओही असंखगुणिदं सेसामा होति जहजोगिं ॥६॥ इंसदमिदचलणं अणंतसुहणाणविरियदंसणयं । भष्वकुमुदेक्कचंद विमलजिणि पणमिणं॥ १९ एवमाइरियपरंपरागयतिलोयपण्णत्तीए नोइसियलोयसरूवणिरूवणपण्णत्ती जाम सत्तमो महाधियारो सम्मत्तो ॥ ॥ आहार, उच्छ्वास, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति, एक समयमें जीवोंकी उत्पत्ति व मरण, आयुके बन्धक भाव, सम्यग्दर्शन ग्रहणके विविध कारण और गुणस्थानादिका वर्णन भावनलोकके समान कहना चाहिये ॥ ६१६-६१७ ॥ विशेष यह कि ज्योतिषियोंकी उंचाई सात धनुषप्रमाण और अवधिज्ञानका विषय असंख्यातगुणा है । शेष आहारादिक यथायोग्य होते हैं ॥ ६१८ ॥ जिनके चरणों में सैकडों इन्द्रोंने नमस्कार किया है और जो अनन्त सुख, ज्ञान, वीर्य एवं दर्शनसे संयुक्त तथा भव्य जनरूपी कुमुदोंको विकसित करनेके लिये अद्वितीय चन्द्रस्वरूप हैं ऐसे विमलनाथ जिनेंद्रको मैं नमस्कार करता हूं ॥ ६१९ ।। इस प्रकार आचार्यपरंपरासे चली आई त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें ज्योतिर्लोक स्वरूपनिरूपणप्रज्ञप्ती नामक सातवां महाधिकार समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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