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अट्टमो महाहियारो ]
कश्मलंकविमुक्कं केवलणागेण दिट्ठसयलङ्कं । गमिऊण अनंतजिणं भणामि सुरलोयपण्णतिं ॥ १ सुरखोकणिवासखिदिं विण्णासो भेदणामसीमाभो । संखा ईदविभूदी आऊ उप्पत्तिमरणअंतरियं ॥ २ आहारो उस्सासो उच्छेदो तह य देवलोयम्मि । आउगबंधणभाओ देवलोयंतियाणं तहा || ३ गुणठाणादिसरूवं दंसणगहणस्स कारणं विविहं । भागमणमोहिणाणं सुराण' संखं च सतीभो ॥ ४ जोणी इदि इगिवी अहियारा विमलबोइजणणीए । जिणमुहकमलविणिग्गय सुरजगपण्णत्तिणामाए ॥ ५ उत्तरकुरुमणुवाणं एक्केणूणेणं' तह य बालेणं । पणवीसुत्तरचउसयकोदंडे हिं विहीणेणं ॥ ६ इगिसट्ठीअहिंएणं लक्खेणं जोयणेण ऊणाओ । रज्जूओ सत्त गयणे उड्डुङ्कं णाकपडलागिं ॥ ७ रिण १०००६१ रिण दंड ४२५ हि वा १ ।
। णिवासखेत्तं सम्मत्तं ।
कणयद्दिचूलिउवरिं उत्तर कुरुमणुवएक्कवालस्स । परिमाणेणतरिदो चेद्वेदि हु इंदओ पढमो ॥ ८
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जो कर्मरूपी कलंक से रहित हैं और जिन्होंने केवलज्ञानके द्वारा सम्पूर्ण पदार्थों को देख लिया है ऐसे अनन्तनाथ जिनको नमस्कार करके मैं सुरलोकप्रज्ञप्तिको कहता हूं ॥ १ ॥
सुरलोक निवासक्षेत्र', विन्यास', भेद, नाम, सीमा, संख्या, इन्द्रविभूति, आयु, उत्पत्ति' व मरणका अन्तर, आहार, उच्छ्वास", उत्सेध', देवलोकसम्बन्धी आयुके बन्धक भाव, लौकान्तिक देवोंका स्वरूप", गुणस्थानादिकका स्वरूप, दर्शनग्रहणके विविध कारण", आगमन", अवधिज्ञान', देवोंकी संख्या", शक्ति और योनि ", इस प्रकार निर्मल बोधको उत्पन्न करनेवाले जिन भगवान् के मुखसे निकले हुए सुरलोकप्रज्ञप्ति नामक महाधिकारमें ये इक्कीस अधिकार हैं ॥ २-५ ॥
उत्तरकुरुमें स्थित मनुष्यों के एक बाल, चार सौ पच्चीस धनुष और एक लाख इकसठ योजनोंसे रहित सात राजु प्रमाण आकाश में ऊर्ध्व ऊर्ध्वं (ऊपर ऊपर) स्वर्गपटल स्थित हैं ॥ ६-७ ॥ राजु ७ यो. १००००६१ दण्ड ४२५ बाल १.
निवासक्षेत्रका कथन समाप्त हुआ ।
कनकाद्रि अर्थात् मेरुकी चूलिकाके ऊपर उत्तरकुरुक्षेत्रवर्ती मनुष्य के एक बाल मात्र के अन्तर से प्रथम इन्द्रक स्थित है ॥ ८ ॥
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१ द ब सुराउ. २. द एक्कण, व एक्कं णूनं. ३ द ब रयणे दंडुरं
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