SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -७. ६१५] सत्तमा महाधियारो [७६७ रचिय एक्कासि बेसदअट्ठासीदिरूवेहिं गुणिदे सम्वादिधणपमाणं होदि । अवररासिं चउसटिरूवेहिं गुणिदे सव्वपचयधणं होदि । एदे दो रासीओ मेलिय' रिणरासिमवणिय गुणगारे-भागहाररूवाणिमोवट्ठाषिय भारभूदसंखेज्जरूवगुणिदजोयणलक्खवगं पदरंगुलकदे संखेजस्वेहिं गुणिदपण्णटिसहस्स-पंचसय-छत्तीसरूवमेत्तपदरंगुलेहि जगपदरमवहरिदमेत्तं सव्वजोइसियबिंबपमाणं होदि । तं चेदं । ४।६५५३६१६५५३.६।। पुणो एक्कम्मि बिंबम्मि तप्पाउग्गसंखेज्जजीवा अत्थि ति तं संखेज्जरूवेहि गुणिदेसि सव्वजोइसिय- ५ जीवरासिपीरमाणं होदि । तं चेदं १६५५३६।। चंदस्स सदसहस्सं सहस्स रविणो सदं च सुक्कस्स । वासाधियहि पलं तं पुण्णं धिसणणामस्स ॥ ६१४ सेसाणं तु गहाणं पल्लद्धं आउगं मुणेदव्वं । ताराणं तु जहण्ण पादन्द्धं पादमुक्कस्सं ॥ ६१५ प १ व १००००० । प १ व १००० । प १ व १००। पपपप । । आऊ समत्ता। होते हैं । पुनः इसे दो स्थानोंमें रचकर ( रखकर ) एक राशिको दो सौ अठासीसे गुणा करनेपर सब आदिधन होता है; और इतर राशिको चौंसठ रूपोंसे गुणा करनेपर सर्व प्रचय धनका प्रमाण होता हैं। इन दो राशियोंको मिलाकर ऋगराशिको कम करते हुए गुणकार एवं भागहार रूपोंको अपवर्तित करके भारभूत (?) संख्यात रूपोंसे गुणित एक लाख योजनके वर्गके प्रतरांगुल करनेपर संख्यात रूपोंसे गुणित पैंसठ हजार पांचसौ छत्तीस रूपमात्र प्रतरांगुलोंसे भाजित जगप्रतरप्रमाण सब ज्योतिषी बिम्बोंका प्रमाण होता है । वह यह है (देखो मूलमें )। पुनः एक विम्बमें तत्प्रायोग्य संख्यात जीव विद्यमान रहते हैं, इसलिये उसे (विम्बप्रमाण ) संख्यात रूपोंसे गुणा करनेपर सर्व ज्योतिषी जीवराशिका प्रमाण होता है । वह यह है (देखो मूलमें)। चन्द्रकी उत्कृष्ट आयु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य, सूर्यकी एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य, शुक्रकी सौ वर्ष अधिक एक पल्य; और बृहस्पतिकी पूर्ण पल्यप्रमाण है । शेष ग्रहोंकी उत्कृष्ट आयु आध पल्यमात्र जानना चाहिये । ताराओंकी जघन्य आयु पादार्ध अर्थात् पल्यके आठवें भागमात्र और उत्कृष्ट पल्यके चतुर्थ भागप्रमाण है ॥ ६१४-६१५ ॥ चन्द्र. उ. आयु पल्य १ वर्ष १०००००। सूर्य प. १ व १००० । शुक्र प. १. व. १०० । बृह. प. १ । शेष ग्रह प. ३। तारा ज, प.है और उ. । इस प्रकार आयुका कथन समाप्त हुआ । १ ब द मेलि. २ द ब गुणहार'. ३ द ते घुट्टवीरसणामस्स, ब ते पुट्ठवरिसणामस्स. ४ ब द प १ल १०००००प। सा १००० प १।१०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy