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तिलोयपण्णत्ती
[७.६१५एत्तो चंदाण सपरिवाराणमाणयणविहाणं वत्तइस्सामो। तं जहा-जंबूदीवादिपंचदीवसमुद्दे मुत्तण तदियसमुहमादि कादूण जाव सयंभूरमणसंमुद्दो ति एदासिमाणयणकिरिया ताव उच्चद- तदियसमुद्दम्मि गच्छो बत्तीस, चउत्थदीवे गच्छो चउसट्ठी, उवरिमसमुद्दे गच्छो अट्ठावीसुत्तरसयं । एवं दुगुणकमेण गच्छा गच्छति जाव सयंभूरमणसमुई ति । संपहि एदेहि गच्छेहि पुध पुध गुणिज्जमाणरासिपरूवणा कीरिदे- तदियसमुद्दे बेसदमट्ठासीदिमुवरिमदीवे तत्तो दुगुणं, एवं दुगुणदुगुणकमेण गुणिज्जमाणरासीमो ५ गच्छति जाव सयंभूरमणसमुई पत्ताभो ति । संपहि अट्ठासीदिविसदेहि गुणिज्जमाणरासीमो मोवट्टिय लद्धेण सगसगगच्छे गुणिय अट्ठासीदिबेसदमेव सव्वगम्छाणं गुणिज्जमाणं कादव । एवं कदै सम्वगच्छा अण्णाणं पेक्खिदूण चउग्गुणकमेण अवट्ठिदा जादा । संपइ चत्तारिरूवमादि कादूण चदुरुत्तरकमेण गदसंकलणाए माणयणे कीरमाणे पुविल्लगच्छेहितो संपहियगच्छा रूऊणा होति, दुगुणजादट्ठाणे चत्तारिरूववड्डीए अभावादो । एदेहि गच्छेहि गुणिज्जमाणमज्झिमधणाणि चउसटिरूवमादि कादूण दुगुण- १. दगुणकमेण गच्छंति जाव सयभरमणसमहो त्ति । पुणो गच्छसमीकरण, सम्वगच्छेस एगेगरूवपक्खणी कायब्वो। एवं कादूण चउसटिरूवेहि मज्झिमधणाणिमोवट्टिय लद्वेण सगसगगच्छे गणिय सन्चगच्छाणं
___ यहांसे आगे सपरिवार चन्द्रोंके लानेके विधानको कहते हैं । वह इस प्रकार हैअम्बूद्वीपादिक पांच द्वीप-समुद्रोंको छोड़कर तृतीय समुद्रको आदि करके स्वयंभूरमण समुद्र तक इनके लानेकी प्रक्रियाको कहते हैं--- तृतीय समुद्रमें गच्छ बत्तीस, चतुर्थ द्वीपमें गच्छ चौंसठ और इससे आगेके समुद्रमें गच्छ एक सौ अट्ठाईस, इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र तक गच्छ दूने दूने क्रमसे चले जाते हैं । अब इन गच्छोंसे पृथक पृथक् गुण्यमान राशियोंकी प्ररूपणा की जाती है। इनमें से तृतीय समुद्रमें दो सौ अठासी और आगेके द्वीपमें इससे दुगुणी गुण्यमान राशि है, इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र तक गुण्यमान राशियां दुगुणे दुगुणे क्रमसे चली जाती हैं। अब दो सौ अठासीसे गुण्यमान राशियोंका अपवर्तन करके लब्ध राशिसे अपने अपने गच्छोंको गुणा करके सब गच्छोंकी दो सौ अठासी ही गुण्यमान राशि करना चाहिये । इस प्रकार करनेपर सब गच्छ परस्परकी अपेक्षा चौगुणे क्रमसे अवस्थित होजाते हैं । इस समय चार को आदि करके चार चार उत्तर क्रमसे गत संकलनाके लाते समय पूर्वोक्त गच्छोंसे सांप्रतिक गच्छ एक कम होते हैं, क्योंकि दुगुणे हुए स्थानमें चार रूपोंकी वृद्धिका अभाव है । इन गच्छोंसे गुण्यमान मध्यम धन चौंसठ रूपको आदि करके स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त दुगुणे-दुगुणे क्रमसे होते गये हैं। पुनः गच्छोंके समीकरणके लिये सब गच्छोंमें एक एक रूपका प्रक्षेप करना चाहिये । ऐसा करनेके पश्चात् मध्यम धनोंका चौंसठसे अपवर्तन करनेपर जो लब्ध आवे उससे अपने अपने गच्छोंको गुणा करके सब गच्छोंकी गुण्यमान राशिके रूपमें चौंसठ रूपोंको
१द व समुद. २६ प वीसदे. ३द ब दिवडिय. ६दब 'धणाणीमोवडीव..
द व चदुतर. ५९ व पक्षेण.
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