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-७. ६१३ ] सत्तमो महाधियारो
[७६३ दीवस्स वा उवहिस्स वा दु पणजादपढमवलयट्ठाणं मोत्तूण सव्वत्थं चउक्कं उरुत्तरकम वक्तव्वं । मणुसुत्तरगिरिंदादो पण्णाससहस्सजोयणाणि गंतूण पढमवल यम्मि ठिदचंदाइचाण विच्चालं सत्तेतालसहस्स-णवसयचोइसजोयणाणि पुणो छहत्तरिजादसदसा तेसीदिजुदएक्कसयरूवेहि भजिदमेत होदि । तं चेदं ४७९१४ |१७| विदियवलये चंदाइचाणमंतरं अद्वेतालसहस्स-छसय-छादाला जोयणाणि पुणो इगिसयतीसजुदाणं दोणि सहस्सा कलाओ होदि दोणिसयसत्तावण्णवेणब्भहियदोणिसहस्सेण हरिदमेत्तं ५ होदि । तं चेर्दै । ४८६४६२१३०/ एवं दवं जाव सयंभूरमणसमुद्दो त्ति । तत्थ अंतिमवियप्पं वत्तइस्सामो- सयंभूरमणसमुदस्स पढमवलए एकेकचंदाइच्चाणमंतरं तेतीससहस्स-तिसय-इगितीसजोयणाणि अंसा पुण पणारसजुदेवमयं हारो तेसीदिजुदएक्कसयरूवेण अभहियं होदि पुणो रूवस्स असंखेज्जभागेणभहियं होदि । तच्चेदं ३३३३१ । भा एवं संयंभूरमणसमुदस्स बिदियपहष्यहुदिदुचरिमपहंतं विसेसाहियपरूवेण जादि । एवं सयंभूरमणसमुदस्स चरिमवलयम्मि चंदाइच्चाणं विच्चालं १. भण्णमाणे छादालसहस्स-एक्कसय बावपणजोयणयपमाणं होदि पुणो बारसाहियएकसयकलाओ हारो तेणउदिरूवेणभहियसत्तसयमेत्तं होदि। तं चेदं ४६१५२ धण अंसा'
। एवं अचरजोइगणपरूवणा समत्ता ।
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चला गया है। अर्थात् इन वलयोंमें चयका प्रमाण सर्वत्र चार है (जैसे-- पु. द्वीपके उत्तरार्द्ध में प्र. वलयमें १४४, १४८, १५२ इत्यादि )। द्विचरम द्वीप अथवा समुद्रके प्रथम वलय स्थानको छोड़कर सर्वत्र चार चारके उत्तर क्रमसे वृद्धि कहना चाहिये ( ? )।
मानुषोत्तर पर्वतसे आगे पचास हजार योजन जाकर प्रथम वलयमें स्थित चन्द्र-सूर्योका अन्तराल सैंतालीस हजार नौ सौ चौदह योजन और एक सौ तेरासीसे भाजित एक सौ व्यत्तर भागमात्र अधिक है । वह यह है - ४७९१४१४६ । द्वितीय बलयमें चन्द्र-सूर्योका अन्तर अड़तालीस हजार छह सौ छयालीस योजन और दो हजार दो सौ सत्तावनसे भाजित दो हजार एक सौ तीस कला अधिक है । वह यह है- ४८६४६३३३७ । इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्र पर्यन्त ले जाना चाहिये । उसमेंसे अन्तिम विकल्पको कहते हैं - स्वयंभूरमण समुद्रके प्रथम वलयमें प्रत्येक चन्द्र-सूर्योका अन्तर तेतीस हजार तीन सौ इकतीस योजन और एक सौ तेरासीसे भाजित एक सौ पन्द्रह भाग अधिक तथा असंख्यातसे भाजित एक रूप अधिक है। वह यह है- ३३३३१११५। इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्रके द्वितीय पथसे लेकर द्विचरम पथ पर्यन्त विशेष अधिक रूपसे होता गया है । इस प्रकार स्वयंभूरमण समुद्रके अन्तिम वलयमें चन्द्र-सूर्योके अन्तरालके कहनेपर छयालीस हजार एक सौ बावन योजनप्रमाण और सात सौ तेरानबैसे भाजित एक सौ बारह कला अधिक है । वह यह है-४६१५२११३ ।
इस प्रकार अचर ज्योतिर्गणकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
१दब तेसदसीदिरूवेहिं.
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