SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथका रचनाकाल ( ९ ) 1 यह दुर्भाग्य की बात है कि हमें कषायपाहुडके चूर्णिसूत्र के तथा प्रस्तुत तिलोयपण्णत्ति के कर्ता यतिवृषभ के विषयमें अधिक ज्ञान नहीं है । तिलोयपण्णत्तिकी जिस गाथा में इलेषरूप से उनका संकेत किया गया है, उसीके समान एक गाथा जयधवलामें भी पाई जाती है, और संभवतः इन दोनों गाथाओंमें कषायप्राभृतकी गाथाओंके रचयिता गुणधरका है । हां यह संकेत मिलता है कि यतिवृषभका गुणधरके प्रति बड़ा दोनोंमें परस्पर क्या सम्बन्ध था, यह हमें ज्ञात नहीं है । वहां ऐसा कोई समसामयिक थे । यह बात वीरसेनने कही है कि यतिवृषभ आर्यमक्षुके शिष्य एवं नागहस्तिके अंतेवासी थे । शिष्यका अभिप्राय परम्परा शिष्य से भी हो सकता है, किन्तु ' अन्तेवासी ' (निकटमें रहनेवाले ) से तो यही ध्वनित होता है कि वे नागइस्तिके समसामयिक व साक्षात् शिष्य थे । कुछ वर्ष पूर्व यह अनुमान किया गया था कि आर्यमक्षु और आर्य नागहस्ति तथा नन्दिसूत्रमें उल्लिखित ' अज्ज मंगु ' और ' अज्ज नागहत्थि ' क्रमशः एक ही हो ( प्रवचनसारकी प्रस्तावना, बम्बई १९३५, पृ. १५ टि. ३ ) । ४ ग्रंथका रचनाकाल यतिवृषभ और तदनुसार तिलोयपण्णत्तिका कालनिर्णय स्वयं एक बड़ी समस्या है । इस विषय से सम्बद्ध जो कुछ प्रमाण उपलब्ध है वह न तो पर्याप्त है और न निर्णयात्मक । ऐसी परिस्थितिमें इनके कालनिर्णयका जो भी प्रयत्न किया जायगा वह अनिश्चयात्मक ही हो सकता है। इस कार्यमें हमें निष्पक्षभाव से उपलभ्य सामग्रीका पर्यालोचन करना चाहिये और किसी बातका एकान्त आग्रह नहीं रखना चाहिये। यहां हम जो कालनिर्देश कर रहे हैं वह और अधिक खोज-बीनके लिये दिग्दर्शन मात्र कहा जा सकता है । उल्लेख अन्तर्निहित आदरभाव था । उन संकेत नहीं है कि बे तिलोयपण्णत्तमें हमें जिस विवेचनपद्धतिका दर्शन होता है, उसमें जो निरन्तर इस बात पर जोर दिया गया है कि उसका समस्त विषय परम्परागत है, विषयका जो व्यक्तिनिरपेक्ष प्ररूपण किया गया है तथा जो प्रमाणोल्लेख पाये जाते हैं, वे सब यही सूचित करते हैं कि तिलोयपण्णत्तिकी ग्रंथरचना पीछेके वैयक्तिक ग्रंथकर्ताओं के ग्रंथोंकी अपेक्षा आगम ग्रंथोंसे अधिक सम्बद्ध है। यतिवृषभ शिवार्य, वट्टकेर, कुन्दकुन्द आदि जैसे ग्रंथरचयिताओं के वर्गके हैं; और उनकी तिलोयपण्णत्ती उन आगमानुसारी ग्रंथोंमेंसे है जो पाटलीपुत्रमै संगृहीत आगमके कुछ आचार्योंद्वारा अप्रामाणिक और स्याज्य ठहराये जानेके पश्चात् शीघ्र ही आचार्यानुक्रमसे प्राप्त परम्परागत ज्ञानके आधारसे स्मृतिसहायक लेखोंके रूपमें संग्रह किये गये । इस पार्श्वभूमिको ध्यान में रखते हुए आइए हम बाह्य और आभ्यन्तर सूचनाओंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy