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१०]
तिलोयपण्णत्ती
[ ७.३१९
छगयणसत्ता भट्ठ ककमेण जोयणाणि कला । एक्कोणतीसमेता तावखिदी पुंडरंगिणिए ॥ ३१९
८७०६६
२९ ३६६०
चपंचतिचणवया अंककमे छकसत्तच उभंसा | पंचेगवहिदाओ बिदियपहक्कस्स पढमपहताम ॥ ३२०
९४३५४
1
चढण उदिसहस्सा तियसयाणि उगलट्ठि जोयगा अंसा । उगसट्ठी पंच जया विदियपहकम्मि बिदिय पहताओ ॥
४७६ ९१५
५ .९
९४३५९
९१५
उदिसहस्सा तियसयाणि पष्णट्टि जोयणा अंसा । इगिरूत्रं होंति तदो ब्रिदिप कम्मि तदियपइता भो' ॥
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९४३६५
एवं मज्झिमपदस्स याइलपहपरियंतं दध्वं ।
सततियअट्ठच उणवअंकक्क्रमेण जोयणाणि अंसा । तेणउदी चारिसया विदियपइक्कम्मि मज्झताओ ||
९४८३० | २१३ |
पुंडरीकिणी नगरी तापक्षेत्रका प्रमाण छह, छह, शून्य, सात और आठ, इन अंकों के क्रमसे अर्थात् सतासी हजार छयासठ योजन और उनतीस कलामात्र होता है ॥ ३१९ ॥
८७०६६६६ ।
रा
द्वितीय पथमें स्थित सूर्यका तारक्षेत्र प्रथम पथमें चार, पांच, तीन चार और नौ, इन अंकों के क्रमसे अर्थात् चौरानबे हजार तीन सौ चौवन योजन और नौ सौ पन्द्रह से भाजित चार सौ छयत्तर भाग अधिक होता है ॥ ३२० ॥ ९४३५४११६ 1
- सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित रहनेपर द्वितीय पथमें तापक्षेत्रका प्रमाण चौरानबे हजार तीन सौ उनसठ योजन और पांच सौ उनसठ भाग अधिक होता है ॥ ३२१ ॥
९४३५९११५ ।
सूर्यके द्वितीय पथमें स्थित रहने पर तृतीय पथमें तापक्षेत्रका प्रमाण चौरानबे हजार तीन सौ पैंसठ योजन और एक भागमात्र अधिक होता है ॥ ३२२ ॥ ९४३६ १९ १५ । इस प्रकार मध्यम पथके आदि पथ पर्यन्त ले जाना चाहिये ।
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सूर्य के द्वितीय मार्ग में स्थित रहने पर मध्यम पथमें तापका प्रमाण सात, तीन, आठ, चार और नौ, इन अंकों के क्रमसे अर्थात् चौरानबे हजार आठ सौ सैंतीस योजन और चार सौ तेरा भाग अधिक होता है ॥ ३२३
९४८३७११३ I
१ एषा गाथा व पुस्तके नाहित.
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