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________________ ७०८] तिलोयपण्णत्ती [ ७.३०८ अट्ठावण सहस्सा एक्कसयं तेरसुत्तरं लक्ख' । जोयणया चउअंसा पविहत्ता पंचरूवेहिं ॥ ३०८ |५| एवं होदि प्रमाणं लवणोदहिवासछट्ठे भागस्स | परिधीए तावखेत्तं दिवसयरे पढनमग्नठिदे ॥ ३०९ इटुं परिरयरासिं चहत्तर दोसएहिं गुणिदव्वं । णवसयपण्णरसहिदे तावखिदी बिदियपहट्टिदकस्स ॥ १५८११३ २७४ ९१५ णवयसहस्सा चउसय उणहत्तरि जोयणा दुसयअंसा । तेणवदीहि जुदा तहाँ मेरुणविदियपठिदे तवणे ॥ ९४६९ इगितिदुतिपंचकमसो जोयणया तह कलाओ सगतीसं । सगसयबत्तीसहिदा खेमापणिधीए तावखिदी ॥ . l २९३ ९१५ ५३२३१ भट्ठे कति पंचा अंककमे णवपणछतिय अंसा । णभछच्छत्तियभजिदा खेमपुरीपणिधितावखिदी ॥ ३१३ / / . ३.६५९ ३६६० ५८३६८ ३७ सूर्य के प्रथम मार्ग में स्थित रहने पर लवगोदधिके विस्तारके छठे भागकी परिधि में यह तापक्षेत्रका प्रमाण एक लाख अट्ठावन हजार एक सौ तेरह योजन और पांच रूपोंसे विभक्त चार भाग अधिक है || ३०८-३०९ ॥। १५८११३६ । Jain Education International इष्ट परिधिराशिको दो सौ चौहत्तर से गुणा करके नौ सौ पन्द्रहका भाग देने पर जो "लब्ध आवे उतना द्वितीय पथमें स्थित सूर्य के तापक्षेत्रका प्रमाण होता है || ३१० ॥ ६६४ । सूर्य के द्वितीय पथमें स्थित रहनेपर मेरुपर्वतके ऊपर तापक्षेत्रका प्रमाण नौ हजार चार सौ उनहत्तर योजन और दो सौ तेरानचे भाग अधिक है ।। ३११ ॥ ९४६९२१३ 1 (मेरुपरिधि ३१६२२x२७४=८६६४४२८; ८६६४४२८÷९१५=९४६९३१३ ) क्षेमा नगरीके प्रणिधि भागमें तापक्षेत्रका प्रमाण एक, तीन, दो, तीन और पांच, इन अंकों के क्रमसे अर्थात् - तिरेपन हजार दो सौ इकतीस योजन और सात सौ बत्तीससे भाजित सैंतीस कला अधिक है ।। ३१२ ॥ ५३२३१७३२ । क्षेमपुरीके प्रणिधिभाग में तापक्षेत्रका प्रमाण आठ, छह, तीन, आठ और पांच, इन अंकों के पते अर्थात् अट्ठावन हजार तीन सौ अड़सठ योजन और तीन हजार छह सौ साठसे भाजित तीन हजार छह सौ उनसठ भाग अधिक है || ३१३ ।। ५८३६८३६६७ । १ द ब लक्खा. २. द वासरकभाग ३ द ब तेणवदिजुदा तहा. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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