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________________ -७.१०४ सत्तमा महाधियारों • सत्तासीविसहस्सा दुसया चउवीस जोयगा अंसा । एक्कत्तरि सीदिहिदा तावलिदी पुंडरीगिणीणयरे ॥ ___ ८७२२४ | ८७२२४ च उगउदिसहस्सा पगुपयागि छब्बीस जोयगा सत्त।। भंसा दसेहिं भजिदा पढनपहे तावखिदिपरिही। चउणउदिसहस्सा पणुसयाणि इगितील जायगा अंसा | चतारो पंवहिदा बिदियरहे तावखिदिपरिही ॥ ९४५३१६ एवं मनिमममग्गंतं णेदवं । पंचागउदिसहस्सा दसुत्तरा जायणाणि तिमिण कला । पंचविहता मम्झिमपहम्नि तावस्त परिमाणं॥ एवं दुचरिममगतं णेदवं । पणगउदिसहस्सा चउसयाणि चउगउदि जायणा असा । पंचहिदा बाहिरए पढनरहे संठिी सूरे ॥ ३०. पुण्डरीकिणी नगरमें तापक्षेत्र सतासी हजार दो सौ चौबीस योजन और अस्सीसे भाजित इकहत्तर भाग अधिक है ।। ३०३ ॥ ८७२२४४ । प्रथम पथमें तापक्षेत्रकी परिधि चौरानबै हजार पांच सौ छब्बीस योजन और दशसे भाजित सात भाग अधिक है ॥ ३०४ ।। ९४५२६३७ । द्वितीय पथमें तापक्षेत्र की परिधि चौरानवै हजार पांच सौ इकतीस योजन और पांचसे भाजित चार भाग अधिक है ॥ ३०५ ॥ ९५५३१५ । इस प्रकार मध्यम मार्ग तक ले जाना चाहिये । मध्यम पथमें ताप का प्रमाग पंचानबै. हजार दश योजन और पांचसे विभक्त तीन कला अधिक है ॥ ३०६ ॥ ९५०१०३ । इस प्रकार विचरम मार्ग तक ले जाना चाहिये । सूर्य के प्रथम पथमें स्थित रहने पर बाह्य मार्गमें तापक्षेत्रका प्रमाण पंचानौ हजार चार सौ चौरानबै योजन और एक योजनके पांचवें भागसे अधिक है ॥ ३०७ ॥ ९५१९४६ । १६ ब पुरगिणी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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