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तिलोयपण्णत्ती
[७. २६४
सत्तावीससहस्सा छादालं जोयणाणि पणलक्खा। परिही लवणमहणवविखंभच्छद्रभागम्मि ॥ २६४
५२७०४६ । रविबिंबा सिग्धगदी णिग्गच्छंता हुवंति पविसंता । मंदगदी असमागा परिही साहति समकाले ॥ २६५ एक्कं जोयणलक्ख ण य सहस्सयाणि अडसयाणि पि। परिहीणं पत्तेक्कं काव्या' गयणखंडाणिं ॥२६६
१०९८०० । गच्छदि मुहुत्तभक्के तीसब्भहियाणि अट्ठरसयाणि । णभखंडाणि रविणो तम्मि हिदे सव्वगयणखंडाणि ॥
१८३० ।. अभंतरवीहीदो दुतिचदुपहुदीसु सव्यवीहीसुं । कमसो बे रविबिंबा भमंति सट्ठीमुहुत्तेहिं ॥ २६८ इच्छियपरिहिपमाणं सट्टिमुहत्तेहिं भाजिदे लद्धं । णेयं दिवसकराणं महत्तगमणस्स परिमाणं ॥ २६९
___ लवण महासमुद्रके विस्तारके छठे भागमें परिधिका प्रमाण पांच लाख सत्ताईस हजार च्यालीस योजनमात्र है ॥ २६४ ॥ ५२७०४६ ।
सूर्यबिम्ब बाहिर निकलते हुए शीघ्रगतिबाले और प्रवेश करते हुए मन्दगतिवाले होते हैं, इसीलिये ये समान कालमें ही असमान परिवियोंको सिद्ध करते हैं ॥ २६५ ॥
इन परिधियों से प्रत्येकके एक लाख नौ हजार आठ सौ योजनरूप गगनखण्ड करना चाहिये ॥ २६६ ॥ १०९८०० ।
सूर्य एक मुहूर्तमें अठारह सौ तीस गगन खण्डों का अतिक्रमण करता है, इसलिये इस राशिका समस्त गगनखण्डोंमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतने मुहूर्तप्रमाण सम्पूर्ण गगनखण्डोंके अतिक्रमणका काल होगा ॥ २६७ ॥
सर्व ग. खं. १० १८०० १८३० = ६० मुहूर्त स. ग. अतिक्रमणकाल |
अभ्यन्तर वीथीसे लेकर दो, तीन, चार इत्यादि सब वीथियोंमें क्रमसे दो सूर्यबिम्ब साठ मुहूतीमें भ्रमण करते हैं ।। २६८ ॥
इष्ट परिधिप्रमाणमें साठ मुहूर्ताका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना सूर्योके एक मुहूर्तकालपरिमित गमन क्षेत्रका प्रमाण जानना चाहिये ।। २६९ ॥
इष्ट परिधिप्रमाण ३१५०८९ ’ ६० = ५२५१२९ एक मुहूर्त गमनक्षेत्र ।
१द ब कालं वा. २दब तम्भि लिदे. ३दब सेसं.
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