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ग्रंथकार यतिवृषभ .. २. पं. जुगलकिशोर मुख्तार द्वारा लिखित 'कुन्दकुन्द और यतिवृषभ' (अनेकान्त २, पृ. १-१२)।
३. पं. फूलचन्द्र शास्त्री द्वारा लिखित । वर्तमान त्रिलोकप्रज्ञप्ति और उसके रचनाकाल आदिका विचार ' ( जैन सिद्धांत भास्कर ११, पृ. ६५-८२) ।
४. पं. महेंद्रकुमार न्यायाचार्य द्वारा लिखित जयधवलाकी भूमिका पृ. १२-२५, ३९.६९ आदि ( मथुरा, १९४४)।
५. पं. जुगलकिशोर मुख्तार द्वारा लिखित व अभी तक अप्रकाशित “ तिलोयपण्णत्ति और यतिवृषभ " जिसमें लेखकने अपने पूर्व लेख (नं. २ ) का व पं. फूलचन्द्र शााके लेख (नं. ३) का पुनः पर्यालोचन किया है। इस अप्रकाशित लेखकी हस्तलिखित प्रतिको हमारे उपयोगके लिये भेजकर पंडितजीने हमें विशेष रूपसे उपकृत किया है।
निम्न ऊहापोहमें जहां इन विद्वानोंका नामनिर्देश किया गया है वहां उनके इन्ही उपयुक्त लेखोंसे अभिप्राय है।
स्वयं तिलोयपण्णातके उल्लेखानुसार प्रस्तुत ग्रंथका कर्तृत्व अर्थ और ग्रंथके भेदसे दो प्रकारका है । लोकातीत गुणोंसे सम्पन्न भगवान् महावीर इसके अर्थकर्ता हैं। उनके पश्चात् गौतमादि महान् आचार्योंके क्रमसे इस विषयका ज्ञान परम्परासे चला आया है (१,५५ आदि )। इस ज्ञानको प्रथका वर्तमान स्वरूप देनेका श्रेय किसी एक आचार्यको अवश्य होगा। अतएव हमें यह खोज करना आवश्यक है कि क्या प्रस्तुत ग्रंथमें इसका कोई वृत्तांत हमें प्राप्त हो सकता है। ग्रंथकर्ताने आदिमें या पुष्पिकाओंमें न तो अपने गुरु ओंका कोई उल्लेख किया और न स्वयं अपना नामनिर्देश। इस प्रसंगमें हमारा ध्यान केवल निम्न लिखित दो गाथाओं (ति. प. ९, ७६.७७ ) पर जाता है
पणमह जिणवरवसहं गणहरवसहं तहेव गुणवसहं । दट्ठण परिसवसहं जदिवसहं धम्मसुत्तपाढए वसहं ॥ चुण्णिस्सरूवछक्करणतरूवपमाण होइ । जं तं (:) ।
अट्ठसहस्सपमाणं तिलोयपण्णत्तिणामाए ॥ ___ इन गाथाओंके ठीक अर्थ बैठानेमें कुछ कठिनाई प्रतीत होती है । प्रथम गाथामें यद्यपि 'जिनवरवृषभ' को नमस्कार किया गया है, तथापि उसमें यह भी आभास मिलता है कि कर्ताने यहां अपना नाम जदिवसह ( यतिवृषभ ) भी प्रकट किया है। दूसरी गाथामें कतीने तिलोयपण्णत्तिका प्रमाण बतलाने के लिये संभवतः अपनी ही दो अन्य रचनाओं चूर्णिस्वरूप और [ षट् - ] करण. स्वरूपका उल्लेख किया है । यह बात अन्य प्रमाणोंसे उपलब्ध वृत्तान्तों द्वारा भी बहुत कुछ समर्पित होती है।
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