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________________ ६९४१ [७. २३१पंचत्तालसहस्सा पणहत्तरि जोयणाणि भदिरेके । मज्झिमपहथिददिवमणिचामीयरसेलविञ्चालं ॥ २३॥ ४५०७५। एवं दुचरिममग्गंतं णेदव्वं । पणदालसहस्साणिं तिष्णिसया तीसजोयणा अधिया । बाहिरपहठिदवासरकरकंचगसेलविच्चालं ॥ २३२ ४५३३०। बाहिरपहादु भादिममग्गे तवणस्स भागमणकाले । पुष्वक्खेवं सोहसु दुचरिमपहपहुदि जाव पढमपहं ॥ सटिजुदा तिसयाणि सोहज्जसु जंबुदीवरुंदाम्म । जं सेसं पढमपहे दोण्हं दुमणीण विच्चालं ॥ २३४ ।। णवणउदिसहस्सा छस्सयाणि चालीसजायणाणं पि । तवणाणं आबाहा भन्भंतरमंडलठिदाणं ॥ २३५ ९९६४०। दिणवइपहसूचिचए दोसुं गुणिदे हुवेदि भाणूणं । भाबाहाए वड्डी जोयणया पंच पंचतीसकला ॥ २३६ मध्यम पथमें स्थित सूर्य और सुवर्णशैलके बीच पैंतालीस हजार पचत्तर योजनसे अधिक अन्तराल है ॥ २३१ ॥ ४५०७५ । इस प्रकार द्विचरम मार्ग तक लेजाना चाहिये । बाह्य पथमें स्थित सूर्य और सुवर्णशैल के बीच पैंतालीस हजार तीन सौ तीस योजनप्रमाण अन्तराल है ॥ २३२ ॥ ४५३३० । — सूर्यके बाह्य मार्गसे आदि पथकी ओर आते समय पूर्व वृद्धिको कम करनेपर द्विचरम पथसे लेकर प्रथम पथ तकका अन्तरालप्रमाण जाना जाता है ॥ २३३ ॥ जम्बूद्वीपके विस्तारमेंसे तीन सौ साठ योजनोंको कम करनेपर जो शेष रहे उतना प्रथम पथमें दोनों सूर्योके बीच अन्तराल रहता है ॥ २३४ ॥ जं. वि. १००००० - ३६० = ९९६४० यो. अन्तराल । अभ्यन्तर मण्डलमें स्थित दोनों सूर्योका अन्तराल निन्यानबै हजार छह सौ चालीस योजनमात्र है ॥ २३५॥ सूर्यकी पथसूचीवृद्धिको दोसे गुणित करनेपर सूर्योकी अन्तरालवृद्धिका प्रमाण आता है जो पांच योजन और पैंतीस कला अधिक है ॥ २३६ ॥ सूर्यपथसूची १४ ४ २ = ३४. = ५३५ यो. अं. वृ.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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