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________________ -७. २३०] सत्तमौ महाधियारो पढमपहादो रविणो बाहिरमग्नम्ति गमणकालम्मि । पडिमग्गमेत्तियं बिंबविश्वालं मंदरकाणं ॥ २२६ अहरूऊण इटपई पहसूचिचएण गुणिय मेलिजं । तवणादिमपहमंदरविच्चाले होदि इदविच्चालं॥ २२७ चउदालसहस्साणिं अट्ठसया जायणाणि वीसं पि । एदं पढमपहद्विददिणयरकगयदिविच्चालं ॥ २२८ ४४८२० । चउदालसहस्सा अडसयाणि बावीस भाणुबिंबजुदा । जोयणय। बिदियपहे तिन्वंसुसुमेरुविच्चालं ॥ २२९ ४४८२२ / १. चउदालसहस्सा अडसयाणि पणुवीस जोयणाणि कला | पणुतीस तहज्जपहे पतंगहेमहिविच्चालं ॥ २३० ३१ ४४८२५ एवमादिमज्झिमपहपरियंतं णेदव्वं । . सूर्यके प्रथम पथसे बाह्य मार्गकी ओर जाते समय प्रत्येक मार्गमें मन्दर पर्वत और सूर्यविम्बके बीच इतना अन्तराल होता है ॥ २२६ ॥ १ । । अथवा, एक कम इष्ट पथको पथसूचीचयसे गुणा करके प्राप्त प्रमाणको सूर्यके आदि पथ और मन्दरके बीच जो अन्तराल है उसमें मिला देनेपर इष्ट अन्तरालका प्रमाण होता है ॥ २२७ ॥ उदाहरण- तृतीय पथ और मेरुका अन्तराल जाननेके लिये- इष्ट पथ ३ -१ = २; पथसूचीचय १० x २ = ३५ = ५३५, ४४८२० + ५३५ = ४४८२५६३।। प्रथम पथमें स्थित सूर्य और कनकाद्रि ( मेरु) के बीच चवालीस हजार आठसौ बीस योजनप्रमाण अन्तराल है ॥ २२८ ॥ ४४८२० । द्वितीय पथमें सूर्य और मेरुके बीच सूर्यबिम्ब सहित चवालीस हजार आठ सौ बाईस योजनप्रमाण अन्तराल है ॥ २२९ ॥ ४४८२२६६ । तृतीय पथमें सूर्य और सुवर्णपर्वतके बीच चवालीस हजार आठ सौ पच्चीस योजन और पैंतीस कलाप्रमाण अन्तराल है ।। २३० ॥ १४८२५३५। इस प्रकार आदिसे लेकर मध्यम पथ पर्यन्त जानना चाहिये । १द ४४८२२ ।, व ४४८२२ । ४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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