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________________ -७. २०३ ] सत्तमो महाधियारो पंचसहस्सा एक्सयं चोदसुत्तरं कोसो । लद्धं मुहुत्तगमणं बारसमपहे सिदंसुस्स ॥ १९७ ५११४ । को १ । अट्ठारसुत्तरसयं पंचसहस्वाणि जोयणाणि च । लद्धं मुहुत्तगमणं तेरसमग्गे हिमंसुस्स ॥ १९८ ५११८ । पंचसहस्सा इगिसयमिगिवीसजुदं सजोपण तिकोसा । लद्धं मुहुत्तगमणं चेोहसमपदम्मि चंदस्स ॥ १९९ ५. २१ । को ३ । [ ६८९ पंचसहस्सेक्कसया पणुवीसं जोयणा दुवे कोसा । लद्धं मुहुत्तमणं सीदंसुणो बाहिरपहम्मि ॥ २०० ५१२५ । को २ । ससहरणयरतलादो चत्तारि पमाणभंगुलाणं पि । हेट्ठा गच्छिय होंति हु राहुविमाणस्स धयदंडा || २०१ राहुल विभागा अंजणवण्णा भरिहरयणमया । किंचूणं जोयणयं विक्खंभजुदा तदद्धबहलत्तं ॥ २०२ पण्णासाधियदुसया कोदंडा राहुणयरबद्दलत्तं । एवं लोयविणिच्छयकत्तायरिओ परूवेदि ॥ २०३ पाठान्तरम् । बारहवें पथमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ चौदह योजन और एक कोशमात्र पाया जाता है ॥ १९७ ॥ यो. ५११४ को . १ । तेरह मार्ग में चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ अठारह योजनप्रमाण पाया जाता है ॥ १९८ ॥ यो. ५११८ । चौदहवें पथमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ इक्कीस योजन और तीन कोशमात्र पाया जाता है ॥ १९९ ॥ यो. ५१२१ को. ३ । बाह्य पथमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ पच्चीस योजन और दो कोशमात्र लब्ध होता है || २०० ॥ यो. ५१२५ को. २ । चन्द्रके नगरतल से चार प्रमाणांगुल नीचे जाकर राहुविमानके ध्वजदण्ड होते हैं ॥ २०१ ॥ राहु विमान अंजनवर्ण, अरिष्ट रत्नोंसे निर्मित, कुछ कम एक योजनमात्र विस्तार से संयुक्त, और विस्तारसे आधे बाहल्यवाले हैं ॥ २०२ ॥ राहुनगरका बाल्य दो सौ पचास धनुषप्रमाण है ऐसा लोकविनिश्वयकर्ता आचार्य प्ररूपण करते हैं ॥ २०३ ॥ पाठान्तर । TP. 87 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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