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________________ ६९० तिलोयपण्णत्ती [७.२०४घउगोउरजुत्तेसु य जिणमंदिरमंडिदेसु णयेरेसुं । तेसु बहुपरिवारा राहू णामेण होति सुरा॥ २०४ राहूण पुरतलाणं दुविहप्पाणिं हुवंति गमणाणि । दिणपन्ववियप्पेहिं दिणराहू ससिसरिच्छगदी ॥ २०५ जस्सि मग्गे ससहरबिंब दिसेदि य तेसु परिपुण्णं । सो होदि पुण्णिमक्खो दिवसो इह माणुसे लोए ॥ तब्बीहीदो लंघिय दीवस्स हुदासमारुददिसादो । तदणंतरचीहीए एंति हु दिणराहुससिपिंबा ॥ २०७ आदे ससहरमंडलसोलसभागेसु एकभागसो । आवरमाणो दीसइ राहूलंघविसेसेणं ॥ २०८ मणलदिसाए लंघिय ससिबि एदि वीहिअद्धंसो। सेसद्धं खुण गच्छदि अवरससिममिदहेदो । तदणंतरमग्गाई णिच्च लंघति राहुससिबिंबा । पवणग्गिदिसाहितो एवं सेसासु वीहीसुं ॥ २१० ससिविबस्स दिणं पडि एकेकपहम्मि भागमेक्केकं । पच्छादेदि हु राहू पण्णरसकलाओ परियंतं ॥ २११ इय एकेक्ककलाए भावरिदाए खु राहुबिबेणं । चंदेक्ककला मग्गे जस्सि दिस्पेदि सो य अमवासो ॥ २१२ चार गोपुरोंसे संयुक्त और जिन मन्दिरोंसे सुशोभित उन नगरोंमें बहुत परिवारसे सहित राहु नामक देव होते हैं ॥ २०४ ।। दिन और पर्वके भेदसे राहुओंके पुरतलोंके गमन दो प्रकार होते हैं । इनमेंसे दिनराहुकी गति चन्द्र के सदृश होती है ॥ २०५॥ यहां मनुष्य लोकमें उनमें से जिस मार्गमें चन्द्रबिम्ब परिपूर्ण दिखता है वह पूर्णिमा नामक दिवस होता है ॥ २०६॥ उस वीथीको लांघकर दिनराहु और चन्द्रबिम्ब जम्बूद्वीपकी आग्नेय और वायव्य दिशासे तदनन्तर वीथामें आते हैं ॥ २०७ ॥ द्वितीय वीथीको प्राप्त होनेपर राहुके गमन विशेषसे चन्द्रमण्डलके सोलह भागोंमेंसे एक भाग आच्छादित दिखता है ॥ २०८ ॥ ___ पश्चात् चद्रबिम्ब अग्निदिशासे लांघकर वीथीके अर्ध भागमें जाता है, द्वितीय चन्द्रसे भ्नमित होनेके कारण शेष अर्ध भागमें नहीं जाता है ॥ २०९ ॥ इसी प्रकार शेष वीथियोंमें भी राहु और चन्द्रबिम्ब वायु और अग्नि दिशासे नित्य तदनन्तर मार्गोंको लांघते हैं । ।। २१०॥ राहु प्रतिदिन एक एक पथमें पन्द्रह कला पर्यन्त चन्द्रविम्बके एक एक भागको आच्छादित करता है ॥ २११ ॥ इस प्रकार राहुबिम्बके द्वारा एक एक करके कलाओंके आच्छादित हो जानेपर जिस मार्गमें चन्द्रकी एक ही कला दिखती है वह अमावश्या दिवस होता है ॥ २१२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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