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________________ ६८८] तिलोयपण्णत्ती [ ७. १९१बाणउदिउत्तराणि पंचसहस्साणि जोयणाणि च । लद्धं मुहुत्तगमणं हिमंसुणो छटमा गम्मि ॥ १९१ ५०९२ । पंचव सहस्साई पणणउदी जोयणा तिकोसा य । लद्धं मुहुत्तगमणं सीदंसुणो सत्तमपहम्मि ॥ १९२ ५०९५ । को ३। पणसंखसहस्साणिं णवणउदी जोयणा दुवे कोसा । लद्धं मुहुत्तगमणं अट्टममग्गे हिमरसिस्स' ॥ १९३ ५०९९ । को २ । पंचव सहस्साणि तिउत्तरं जोयणाणि एक्कसयं । लद्धं मुहुत्तगमणं णवमपहे तुहिणरासिस्स ॥ १९४ पंचसहस्सा छाधियमेक्कसयं जायणा तिकोसा य । लद्वं मुहुत्तगमणं दसमपहे हिममयूखाणं ॥ १९५ ५१०६ । को ३। पंचसहस्सा दसजुदएक्कसया जोयणा दुवे कोसा | लद्धं मुहुत्तगमणं एक्करसपहे ससंकस्स ॥ १९६ ५११० । को २। छठे मार्गमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार बानबै योजन मात्र लब्ध होता है ॥ १९१ ॥ यो. ५०९२ ।। सातवें पथमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार पंचानबै योजन और तीन कोशमात्र प्राप्त होता है ॥ १९२ ॥ यो. ५०९५ को. ३ । आठवें मार्गमें हिमरश्मि अर्थात् चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार निन्यानवै योजन और दो कोशमात्र प्राप्त होता है ॥ १९३ ॥ यो. ५०९९ को. २ । नौवें पथमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ तीन योजनप्रमाण प्राप्त होता है ॥ १९४ ॥ यो. ५१०३ । दशवें पथमें चन्द्रोंका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ छह योजन और तीन कोशप्रमाण पाया जाता है ॥ १९५ ॥ यो. ५१०६ को. ३ । ___ ग्यारहवें पथमें चन्द्रका मुहूर्तगमन पांच हजार एक सौ दश योजन और दो कोशप्रमाण पाया जाता है ॥ १९६ ॥ यो. ५११० को. २ । १द हिमरविस्स, ब हिंसरसिविस. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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