________________
६८२ ]
तिलोय पण्णत्ती
[ ७.१६३
दहीदुगुणं काढूण वग्गिदूणं च । दसगुणिदे जं मूलं परिहिक्लेओ' स णादन्यो ॥ १६३
३५८
४२७
तीसुत्तरबसयजोयणाणि तेदालजुत्तसयमंसा । हारो चत्तारि सया सत्तावीसेहिं अब्भहिया ॥ १६४
१४३
२३०
४२७
वियजोयणलक्खाणिं पण्णरससहस्स तिसयउणवीसा । तेदालजुदसदंसा बिदिय पहे परिक्षिपरिमाणं || १६५
१४३
३१५३१९ ४२७
उणवण्णा पंचसया पण्णरससहस्स जोयण तिलक्खा । छासीदी दुसदकला सा परिही तदियवीहीए ॥ १६६
३१५५४९
२८६ ४२७
७२
चन्द्रपथोंकी सूचीवृद्धिको 'दुगुणा करके उसका वर्ग करनेपर जो राशि प्राप्त हो उसको दश गुणा करके वर्गमूल निकालनेपर प्राप्त राशिके प्रमाण परिधिप्रक्षेप जानना चाहिये ॥ १६३ ॥
च. प. सू. वृद्धि ३६४५७; ३११०२ )२ × १० = २३०३
४ २७
Jain Education International
१ द ब परिक्खेओ.
इसका दूना परिधिप्रक्षेप ।
१४३ ४२७
उपर्युक्त प्रक्षेपक प्रमाण दो सौ तीस योजन और एक योजनके चार सौ सत्ताईस भागों में से एक सौ तेतालीस भाग अधिक है ॥ १६४ ॥ २३०१३३ ।
१४३ ४२७
द्वितीय पथमें परिधिका प्रमाण तीन लाख पन्द्रह हजार तीन सौ उन्नीस योजन और एक सौ तेतालीस भागमात्र है ॥
१६५ ॥
३१५०८९ + २३०
३१५३१९४२
1
तृतीय वीथीकी वह परिधि तीन लाख पन्द्रह हजार पांच सौ उनंचास योजन और दौ सौ छयासी भाग मात्र है ॥
१६६ ॥
३१५३१९ + २३०११ = ३१५५४९१२७ ।
w
-
७२१५८ =
For Private & Personal Use Only
_३११०२ ४२७
;
www.jainelibrary.org