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________________ -७. १६२ ] सत्तमो महाधियारो [६८१ लखं पंचसयाणि छासीदी जोयणा कला तिसया । चउसीदी चोइसमे पहम्मि विच्चं सिदकरराणे ॥ १५८ लक्खं छच्च सयाणि उणसट्ठी जोयणा कला तिसया । पण्णरसजुदा मग्गे पण्णरसं अंतरं ताणं ॥ १५९ बाहिरपहादु ससिणो आदिममग्गम्मि आगमणकाले । पुष्वपमेलिदखेत्तं सोहसु जा चोद्दसादिपढमपहं ।। तियजोयणलक्खाणिं पण्णरससहस्सयाणि उणणउदी। अभंतरवीधीए परिरयरासिस्स परिसंखा ॥१६॥ ३१५०८९ । सेसाणं वीहीणं परिहीपरिमाणजाणणणिमित्तं । परिहिक्खेवं भणिमो गुरूवदेसाणुसारेणं ॥ १६२ चौदहवें पथमें चन्द्रोंका अन्तराल एक लाख पांचसौ छयासी योजन और तीन सौ चौरासी कला अधिक है ॥ १५८ ॥ १००५१४.२२६ + ७२३५८ = १००५८६३६४ । पन्द्रहवें मार्गमें उनका अन्तर एक लाख छह सौ उनसठ योजन और तीन सौ पन्द्रद्द कलामात्र है ॥ १५९ ॥ १००५८६३८४ + ७२३५४ = १००६५९३३५ । चन्द्र के बाह्य पथसे प्रथम पथकी ओर आते समय पूर्वमें मिलाये हुए क्षेत्रको उत्तरोत्तर कम करनेपर चौदहवें पथसे प्रथम पथ तक दोनों चन्द्रोंका अन्तरालप्रमाण होता है ॥ १६० ॥ अभ्यन्तर वीथीके परिरय अर्थात् परिधिकी राशिका प्रमाण तीन लाख पन्द्रह हजार नवासी योजन है ॥ १६१ ॥ ३१५०८९ । शेष गलियोंके परिधिप्रमाणको जानने के लिये गुरूपदेशानुसार परिधिके प्रक्षेपको कहते हैं ॥ १६२॥ १द उणसट्ठी. २द ब सीदकराणं. ३द ब जाणणणमित्त. ४ब परिहिक्खेदं. IP. 86 Jan Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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